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Showing posts from November, 2024

समर्पण का भाव

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 समर्पण का भाव Image by Kati from Pixabay एक बार एक बेहद ख़ूबसूरत महिला समुद्र के किनारे रेत पर टहल रही थी। समुद्र की लहरों के साथ कोई एक बहुत चमकदार पत्थर छोर पर आ गया। महिला ने वह नायाब-सा दिखने वाला पत्थर उठा लिया। वह पत्थर नहीं, असली हीरा था। महिला ने चुपचाप उसे अपने पर्स में रख लिया, लेकिन उसके हाव-भाव पर बहुत फर्क नहीं पड़ा। पास में खड़ा एक बूढ़ा व्यक्ति बड़े ही कौतूहल से यह सब देख रहा था। अचानक वह अपनी जगह से उठा और उस महिला की ओर बढ़ने लगा। महिला के पास जाकर उस बूढ़े व्यक्ति ने उसके सामने हाथ फैलाये और बोला - मैंने पिछले चार दिनों से कुछ भी नहीं खाया है। क्या तुम मेरी मदद कर सकती हो? उस महिला ने तुरंत अपना पर्स खोला और कुछ खाने की चीज ढूँढ़ने लगी। उसने देखा बूढ़े की नज़र उस पत्थर पर है, जिसे कुछ समय पहले उसने समुद्र तट पर रेत में पड़ा हुआ पाया था। महिला को पूरी कहानी समझ में आ गयी। उसने झट से वह पत्थर निकाला और उस बूढ़े को दे दिया। बूढ़ा सोचने लगा कि कोई ऐसी कीमती चीज भला इतनी आसानी से कैसे दे सकता है? बूढ़े ने गौर से उस पत्थर को देखा। वह असली हीरा था। बूढ़ा सोच में पड़ गय...

घोर कलयुग

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 घोर कलयुग Image by Jason Goh from Pixabay घोर कलयुग का अनोखा कमाल - एक चोर की बहुत सुन्दर कहानी। कंडक्टर को किराया देने के लिए मैं जैसे ही जेब में हाथ डालने लगा, साथ बैठे अजनबी ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा - ‘नहीं, भाई साहब! आपका किराया मैं देता हूँ।’ मैंने कहा कि मैं अपना किराया खुद ही देता हूँ। लेकिन अजनबी मेहरबान था और उसने मेरा किराया दे दिया। अगले स्टॉप पर अजनबी बस से उतरा और मैं अपनी जेब से कुछ निकालने लगा, तो सिर थाम कर बैठ गया, क्योंकि उस अजनबी ने मेरी जेब काट ली थी। दूसरे दिन मैंने उस अजनबी को बाज़ार में जा पकड़ा। वह चोर मुझे गले लगाकर रोने लगा - ‘साहब जी! मुझे माफ कर दीजिए। आपका पर्स चोरी करने के बाद मेरी बेटी मर गई।’ मैंने दिल बड़ा करते हुए चोर को माफ कर दिया। चोर चला गया लेकिन वह गले मिलते समय फिर से मेरी जेब साफ कर गया था। कुछ दिनों बाद मैं अपनी मोटरसाइकिल से कहीं जा रहा था कि रास्ते में फिर उसी चोर ने रोक लिया। चोर ने रोते हुए माफी मांगी और चोरी किये हुए सारे पैसे भी लौटा दिये। फिर वह चोर मुझे पास के रेस्टोरेंट में ले गया, मुझे चाय-नाश्ता कराने के बाद चला ...

अंगूठी की कीमत

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 अंगूठी की कीमत Image by Mary Basket from Pixabay एक नौजवान शिष्य अपने गुरु के पास पहुँचा और बोला, “गुरु जी! एक बात समझ नहीं आती, आप इतने साधारण वस्त्र क्यों पहनते हैं? इन्हें देख कर लगता ही नहीं कि आप एक ज्ञानी व्यक्ति हैं, जो सैकड़ों शिष्यों को शिक्षित करने का महान कार्य करता है।” गुरु जी मुस्कुराये। फिर उन्होंने अपनी ऊँगली से एक अंगूठी निकाली और शिष्य को देते हुए बोले, “मैं तुम्हारी जिज्ञासा अवश्य शांत करूँगा, लेकिन पहले तुम मेरा एक छोटा सा काम कर दो। इस अंगूठी को लेकर बाजार जाओ और किसी सब्जी वाले या ऐसे ही किसी दुकानदार को इसे बेच दो। बस इतना ध्यान रहे कि इसके बदले कम से कम सोने की एक अशर्फी जरूर लाना। शिष्य फौरन उस अंगूठी को लेकर बाजार गया पर थोड़ी देर में अंगूठी वापस लेकर लौट आया। “क्या हुआ, तुम इसे लेकर क्यों लौट आये?”, गुरु जी ने पूछा। “गुरु जी! दरअसल मैंने इसे सब्जी वाले, किराना वाले और अन्य दुकानदारों को बेचने का प्रयास किया पर कोई भी इसके बदले सोने की एक अशर्फी देने को तैयार नहीं हुआ।” गुरु जी बोले, “अच्छा! कोई बात नहीं। अब तुम इसे लेकर किसी जौहरी के पास ज...

धृतराष्ट्र के सौ पुत्र

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 धृतराष्ट्र के सौ पुत्र Image by Bruno from Pixabay एक दंतकथा में यह सुना जाता है कि जब राजा धृतराष्ट्र के सौ पुत्र एक ही साथ मृत्यु को प्राप्त हुए, तब राजा ने श्री कृष्ण से पूछा कि जीवन में मैंने ऐसा कौन सा भयंकर पाप किया, जिसके फलस्वरूप मेरे सौ पुत्र एक ही साथ मर गए। इस पर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें उनके पिछले जन्मों को देखने की दिव्य दृष्टि प्रदान की। तब राजा ने देखा कि लगभग पचास जन्म पूर्व वे एक बहेलिया थे और वृक्ष पर बैठे पक्षियों को पकड़ने के लिए उन्होंने जलता हुआ जाल वृक्ष पर फेंका था। उस समय कुछ पक्षी तो उड़ गए थे, परन्तु वे जलते हुए जाल की गर्मी से अंधे हो गए और बाकी सौ पक्षी जलकर खाक हो गए। राजा का वह कर्म पचास जन्मों तक उनके संचित कर्मों में बिना पके पड़ा रहा और जब राजा के पुण्य समाप्त हो गए, तब वह संचित कर्म फल देने के लिए तत्पर हुआ, जिससे राजा को इस जीवन में दृष्टिहीन होकर अपने सौ पुत्रों के निधन के मर्मान्तक आघात को सहना पड़ा। विधि के विधान में देर भी नहीं है और अंधेर भी नहीं है। -- सरिता जैन सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका हिसार 🙏🙏🙏 विनम्र निवेदन यदि ...

गृहस्थ या साधु?

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 गृहस्थ या साधु? Image by Judihui from Pixabay एक व्यक्ति कबीर के पास गया और बोला - मेरी शिक्षा तो समाप्त हो गई। अब मेरे मन में दो बातें आती हैं, एक यह कि विवाह करके गृहस्थ जीवन यापन करूँ या सन्यास धारण करूँ? इन दोनों में से मेरे लिए क्या अच्छा रहेगा, यह बताइए? कबीर ने कहा - दोनों ही बातें अच्छी हैं। जो भी करना हो, वह सोच-समझकर करो और वह उच्चकोटि का हो। उस व्यक्ति ने पूछा - उच्चकोटि का करना चाहिए, पर वह उच्चकोटि का कैसे हो? कबीर ने कहा - किसी दिन प्रत्यक्ष देखकर बतायेंगे। वह व्यक्ति रोज उत्तर की प्रतीक्षा में कबीर के पास आने लगा। एक दिन कबीर दिन के बारह बजे सूत बुन रहे थे। खुली जगह में प्रकाश काफी था। कबीर साहेब ने अपनी धर्मपत्नी को दीपक लाने का आदेश दिया। वह तुरन्त बिना किसी सवाल के दीपक जलाकर लाई और उनके पास रख गई। दीपक जलता रहा और वे सूत बुनते रहे। सायंकाल को उस व्यक्ति को लेकर कबीर एक पहाड़ी पर गए। जहाँ काफी ऊँचाई पर एक बहुत वृद्ध साधु कुटी बनाकर रहते थे। कबीर ने साधु को आवाज दी - महाराज! आपसे कुछ जरूरी काम है। कृपया नीचे आइए। बूढ़ा बीमार साधु मुश्किल से इतनी ऊँच...

ईश्वर पर विश्वास

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 ईश्वर पर विश्वास Image by armennano from Pixabay एक दिन एक महिला को किसी धार्मिक स्थल से सेवा का हुक्म आया। महिला सेवा में चली गयी। थोड़ी देर बाद महिला को फोन आया कि उसके बेटे का ऐक्सिडेंट हो गया है। वह महिला भगवान जी से आज्ञा लेकर हॉस्पिटल पहुंची। महिला ने भगवान से प्रार्थना की और अपने बेटे की संभाल में लगी रही। महिला की पड़ोसिन जो उनकी दोस्त भी थी, बोली - बहिन! तेरे भगवान जी कैसे हैं? तू दिन-रात सेवा में लगी रहती है और उन्होंने तेरे साथ क्या किया? तेरे बेटे का ऐक्सिडेंट हो गया। वह महिला बोली - मुझे तो अपने भगवान जी पर पूरा भरोसा है। वह जो करते हैं, बिल्कुल सही करते हैं। इसमें भी कोई राज की बात होगी। मेरे भगवान जी किसी का बुरा नहीं करते, जो होता है अच्छा ही होता है। कुछ दिनों बाद बच्चा ठीक हो गया। महिला फिर से भगवान की सेवा में लग गयी। फिर कुछ दिन बाद पता चला कि बेटे का फिर ऐक्सिडेंट हो गया है। अब पड़ोसन फिर कहने लगी - बहिन! तुझे तेरे भगवान जी ने क्या दिया? तो महिला बोली - कुछ घटनाएँ हमारी परीक्षा के लिए भी होती हैं। ज़रूर मेरे भगवान जी मुझे कुछ समझाना चाहते हैं। मैं...

पांच घंटियाँ

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 पांच घंटियाँ Image by Jaesung An from Pixabay किसी जमाने में एक होटल हुआ करता था, जिसका नाम ‘द सिल्वर स्टार’ था। होटल मालिक के तमाम प्रयासों के बावजूद वह होटल बहुत अच्छा नहीं चल रहा था। होटल मालिक ने होटल को आरामदायक, कर्मचारियों को विनम्र बनाने के अलावा किराया भी कम करके देख लिया, पर वह ग्राहकों को आकर्षित करने में नाकाम रहा। इससे निराश होकर वह एक साधु के पास सलाह लेने पहुँचा। उसकी व्यथा सुनने के बाद साधु ने उससे कहा, ‘इसमें चिंता की क्या बात है? बस! तुम अपने होटल का नाम बदल दो।’ होटल मालिक ने कहा, ‘यह असंभव है। कई पीढ़ियों से इसका नाम ‘द सिल्वर स्टार’ है और यह देश भर में प्रसिद्ध है।’ साधु ने उससे फिर कहा, ‘पर अब तुम इसका नाम बदल कर “द फाइव बैल्स” रख दो और होटल के दरवाजे पर छह घंटियाँ लटका दो।’ होटल मालिक ने कहा, ‘छह घंटियाँ? यह तो और भी बड़ी बेवकूफी होगी। आखिर इससे क्या लाभ होगा?’ साधु ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘यह प्रयास करके भी देख लो।’ होटल मालिक ने वैसा ही किया। इसके बाद जो भी राहगीर और पर्यटक वहाँ से गुजरता, होटल मालिक की गलती बताने चला आता। अंदर आते ही वे ह...