समर्पण का भाव

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समर्पण का भाव

Image by Kati from Pixabay

एक बार एक बेहद ख़ूबसूरत महिला समुद्र के किनारे रेत पर टहल रही थी। समुद्र की लहरों के साथ कोई एक बहुत चमकदार पत्थर छोर पर आ गया।

महिला ने वह नायाब-सा दिखने वाला पत्थर उठा लिया। वह पत्थर नहीं, असली हीरा था। महिला ने चुपचाप उसे अपने पर्स में रख लिया, लेकिन उसके हाव-भाव पर बहुत फर्क नहीं पड़ा।

पास में खड़ा एक बूढ़ा व्यक्ति बड़े ही कौतूहल से यह सब देख रहा था। अचानक वह अपनी जगह से उठा और उस महिला की ओर बढ़ने लगा।

महिला के पास जाकर उस बूढ़े व्यक्ति ने उसके सामने हाथ फैलाये और बोला - मैंने पिछले चार दिनों से कुछ भी नहीं खाया है। क्या तुम मेरी मदद कर सकती हो?

उस महिला ने तुरंत अपना पर्स खोला और कुछ खाने की चीज ढूँढ़ने लगी।

उसने देखा बूढ़े की नज़र उस पत्थर पर है, जिसे कुछ समय पहले उसने समुद्र तट पर रेत में पड़ा हुआ पाया था। महिला को पूरी कहानी समझ में आ गयी। उसने झट से वह पत्थर निकाला और उस बूढ़े को दे दिया।

बूढ़ा सोचने लगा कि कोई ऐसी कीमती चीज भला इतनी आसानी से कैसे दे सकता है?

बूढ़े ने गौर से उस पत्थर को देखा। वह असली हीरा था। बूढ़ा सोच में पड़ गया। इतने में औरत पलट कर वापस अपने रास्ते पर आगे बढ़ चुकी थी।

बूढ़े ने उस औरत से पूछा - क्या तुम जानती हो कि यह एक बेशकीमती हीरा है?

महिला ने जवाब देते हुए कहा - जी हाँ! मुझे यकीन है कि यह हीरा ही है, लेकिन मेरी खुशी इस हीरे में नहीं है बल्कि मेरे भीतर है। समुद्र की लहरों की तरह ही दौलत और शोहरत आती-जाती रहती है। अगर अपनी खुशी इनसे जोड़ेंगे, तो कभी खुश नहीं रह सकते।

बूढ़े व्यक्ति ने हीरा उस महिला को वापस कर दिया और कहा कि यह हीरा तुम रखो और मुझे इससे कई गुना ज्यादा कीमती वह समर्पण का भाव दे दो, जिसकी वजह से तुमने इतनी आसानी से यह हीरा मुझे दे दिया।

कभी-कभी कुछ छोड़ने में ही अपनी भलाई होती है, जोड़ने में नहीं।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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