घोर कलयुग

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घोर कलयुग

Image by Jason Goh from Pixabay

घोर कलयुग का अनोखा कमाल - एक चोर की बहुत सुन्दर कहानी।

कंडक्टर को किराया देने के लिए मैं जैसे ही जेब में हाथ डालने लगा, साथ बैठे अजनबी ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा - ‘नहीं, भाई साहब! आपका किराया मैं देता हूँ।’

मैंने कहा कि मैं अपना किराया खुद ही देता हूँ।

लेकिन अजनबी मेहरबान था और उसने मेरा किराया दे दिया।

अगले स्टॉप पर अजनबी बस से उतरा और मैं अपनी जेब से कुछ निकालने लगा, तो सिर थाम कर बैठ गया, क्योंकि उस अजनबी ने मेरी जेब काट ली थी।

दूसरे दिन मैंने उस अजनबी को बाज़ार में जा पकड़ा। वह चोर मुझे गले लगाकर रोने लगा - ‘साहब जी! मुझे माफ कर दीजिए। आपका पर्स चोरी करने के बाद मेरी बेटी मर गई।’

मैंने दिल बड़ा करते हुए चोर को माफ कर दिया।

चोर चला गया लेकिन वह गले मिलते समय फिर से मेरी जेब साफ कर गया था।

कुछ दिनों बाद मैं अपनी मोटरसाइकिल से कहीं जा रहा था कि रास्ते में फिर उसी चोर ने रोक लिया। चोर ने रोते हुए माफी मांगी और चोरी किये हुए सारे पैसे भी लौटा दिये। फिर वह चोर मुझे पास के रेस्टोरेंट में ले गया, मुझे चाय-नाश्ता कराने के बाद चला गया और जब मैं अपनी मोटरसाइकिल के पास आया तो देखा चोर इस बार मेरी मोटरसाइकिल पर ही हाथ साफ कर गया था।

इस कलियुगी दुनिया में अभी जो लोग हमसे मीठी बातें करते हैं और दूसरों की चुगली करते हैं, वही दुश्मन बन कर हमारी जेब काटते हैं। सच्चा मित्र वही है, जो हमें ग़लत व सही का मतलब समझाए। सही काम में प्रोत्साहन दे और ग़लत राह पर चलने से रोके। जो हर समय हमारे मुँह पर मीठा बना रहे और पीठ के पीछे हमारी बुराई करे, ऐसे व्यक्ति से बच कर रहना चाहिए।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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