गृहस्थ या साधु?

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गृहस्थ या साधु?

Image by Judihui from Pixabay

एक व्यक्ति कबीर के पास गया और बोला - मेरी शिक्षा तो समाप्त हो गई। अब मेरे मन में दो बातें आती हैं, एक यह कि विवाह करके गृहस्थ जीवन यापन करूँ या सन्यास धारण करूँ? इन दोनों में से मेरे लिए क्या अच्छा रहेगा, यह बताइए?

कबीर ने कहा - दोनों ही बातें अच्छी हैं। जो भी करना हो, वह सोच-समझकर करो और वह उच्चकोटि का हो।

उस व्यक्ति ने पूछा - उच्चकोटि का करना चाहिए, पर वह उच्चकोटि का कैसे हो?

कबीर ने कहा - किसी दिन प्रत्यक्ष देखकर बतायेंगे।

वह व्यक्ति रोज उत्तर की प्रतीक्षा में कबीर के पास आने लगा।

एक दिन कबीर दिन के बारह बजे सूत बुन रहे थे। खुली जगह में प्रकाश काफी था। कबीर साहेब ने अपनी धर्मपत्नी को दीपक लाने का आदेश दिया।

वह तुरन्त बिना किसी सवाल के दीपक जलाकर लाई और उनके पास रख गई। दीपक जलता रहा और वे सूत बुनते रहे।

सायंकाल को उस व्यक्ति को लेकर कबीर एक पहाड़ी पर गए। जहाँ काफी ऊँचाई पर एक बहुत वृद्ध साधु कुटी बनाकर रहते थे।

कबीर ने साधु को आवाज दी - महाराज! आपसे कुछ जरूरी काम है। कृपया नीचे आइए।

बूढ़ा बीमार साधु मुश्किल से इतनी ऊँचाई से उतर कर नीचे आया।

कबीर ने पूछा - आपकी आयु कितनी है, यह जानने के लिए नीचे बुलाया है।

साधु ने कहा - अस्सी बरस।

यह कह कर वह फिर से ऊपर चढ़ा। बड़ी कठिनाई से कुटी में पहुँचा।

कबीर ने फिर आवाज दी और नीचे बुलाया।

साधु फिर आया।

उससे पूछा - आप यहाँ पर कितने दिन से निवास करते हैं?

उसने बताया - चालीस वर्ष से।

फिर जब वह कुटी में पहुँचे तो तीसरी बार फिर उन्हें उसी प्रकार बुलाया और पूछा - आपके सब दाँत उखड़ गए या नहीं?

उसने उत्तर दिया - आधे उखड़ गए।

तीसरी बार उत्तर देकर वह ऊपर जाने लगा। तब इतने चढ़ने-उतरने से साधु की साँस फूलने लगी, पाँव काँपने लगे। वह बहुत अधिक थक गया था, फिर भी उसे क्रोध तनिक भी न था।

अब कबीर अपने साथी समेत घर लौटे, तो साथी ने अपने प्रश्न का उत्तर पूछा।

कबीर ने कहा - तुम्हारे प्रश्न के उत्तर में यह दोनों घटनायें उपस्थित हैं। यदि गृहस्थ बनना हो, तो ऐसे जीवनसाथी का चयन करना चाहिये जो हम पर पूरा भरोसा रखे और हमारा कहना सहजता से माने। जैसे कि उसे दिन में भी दीपक जलाने की मेरी आज्ञा अनुचित नहीं मालूम पड़ी, उसने व्यर्थ कुतर्क नहीं किया और साधु बनना हो तो ऐसा बनना चाहिए कि कोई कितना ही परेशान करे, क्रोध व शोक न हो, हम सहज रहें।

क्या समझे?

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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