धृतराष्ट्र के सौ पुत्र
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धृतराष्ट्र के सौ पुत्र
एक दंतकथा में यह सुना जाता है कि जब राजा धृतराष्ट्र के सौ पुत्र एक ही साथ मृत्यु को प्राप्त हुए, तब राजा ने श्री कृष्ण से पूछा कि जीवन में मैंने ऐसा कौन सा भयंकर पाप किया, जिसके फलस्वरूप मेरे सौ पुत्र एक ही साथ मर गए।
इस पर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें उनके पिछले जन्मों को देखने की दिव्य दृष्टि प्रदान की।
तब राजा ने देखा कि लगभग पचास जन्म पूर्व वे एक बहेलिया थे और वृक्ष पर बैठे पक्षियों को पकड़ने के लिए उन्होंने जलता हुआ जाल वृक्ष पर फेंका था। उस समय कुछ पक्षी तो उड़ गए थे, परन्तु वे जलते हुए जाल की गर्मी से अंधे हो गए और बाकी सौ पक्षी जलकर खाक हो गए।
राजा का वह कर्म पचास जन्मों तक उनके संचित कर्मों में बिना पके पड़ा रहा और जब राजा के पुण्य समाप्त हो गए, तब वह संचित कर्म फल देने के लिए तत्पर हुआ, जिससे राजा को इस जीवन में दृष्टिहीन होकर अपने सौ पुत्रों के निधन के मर्मान्तक आघात को सहना पड़ा। विधि के विधान में देर भी नहीं है और अंधेर भी नहीं है।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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