अंतरात्मा की आवाज

👼👼💧💧👼💧💧👼👼

अंतरात्मा की आवाज

Image by Kati from Pixabay

किसी गांव के किनारे एक मंदिर था। मंदिर में एक साधु रहता था।

गांव में एक चोर भी रहता था। चोर खाते-पीते घर का बेटा था। नसीब से वह चोर बन गया, तो जिंदगी भी चोर की ही घसीटनी पड़ रही थी। किसी ने उसके साथ शादी नहीं की।

चोर अपने ही गांव में हाथ मारता था। लोग उसे कबाड़ी चोर कहते थे, क्योंकि वह छोटी-मोटी चोरी ही करता था। उसके चोरी करने से लोगों को दुःख अधिक होता था, हानि कम।

चोर को लाभ कुछ नहीं था, पर परेशानी दुनिया भर की थी।

एक दिन चोर ने सोचा कि मंदिर के चढ़ावे से साधु की थैली भरी पड़ी है। वह संपत्ति भी उसकी मुफ्त की ही है, खून पसीने की तो है नहीं।

अब उसने साधु की कुटिया पर आना-जाना शुरू कर दिया। बगुला भगत की श्रद्धा भक्ति से साधु महाराज तो गद्गद् हो उठे।

चोर मुंह में राम, बगल में छुरी लेकर दिन-भर साधु महाराज की सेवा करता। वैसे साधु भी जानता था कि यह चोर खड़ग सिंह तो है नहीं, एक कबाड़ी चोर है। दिन में इसने हाथ नहीं डालना है, रात में मुझे इसको घास नहीं डालनी है, इसलिए मेरी थैली का बाल बांका होने से रहा।

थैली के आकार को देखकर कबाड़ी चोर की तबीयत हरी होती रहती थी।

उस दिन चोर रात होने पर भी कुटिया से उठाने पर भी नहीं उठा।

दांव में कबाड़ी चोर और बचाव में साधु महाराज रात भर करवट पर करवट बदलते रहे। जब झाड़ी में मुर्गे ने बांग दी, तो साधु महाराज की जान में जान आई।

अगले दिन से साधु महाराज रात को थैली बाहर रख देता और सुबह भीतर। साधु रात भर खर्राटे भरता रहता। चोर रात भर थैली को कुटिया में ढूंढता-ढूंढता थक जाता।

घनघोर अंधेरी रात में साधु की आत्मा ने कहा - तू पापी महात्मा है। उस थैली से तेरा क्या लगाव? बेचारे चोर का भला कर।

उसी रात चोर की आत्मा ने भी कहा - दो आंख, दो हाथ, दो पैर - ये छः संपत्ति भगवान ने तुझे दे रखी हैं। तू उनका दुरुपयोग मत कर। क्यों चोरी के चक्कर में पड़कर जिंदगी को गवां रहा है। मेहनत करने वाला क्या नहीं कर सकता?

जब तक नीयत में फितूर रहेगा, तब तक भाग्य भी तुझ पर मेहरबान नहीं होगा। एक लंबी जिंदगी इस थैली के सहारे कितने दिन कटेगी।

उस रात साधु ने वह थैली बाहर नहीं रखी।

सुबह साधु महाराज ने देखा कि थैली तो वहीं पर है, पर आज कबाड़ी चोर नहीं था।

कबाड़ी चोर वहाँ होता भी कैसे? अब उसकी अंतरात्मा जाग गई थी। उसने चोरी का काम छोड़ दिया और साधु की संगति में रह कर अपने कल्याण में लग गया।

--

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏


विनम्र निवेदन

यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।

धन्यवाद।

Comments

Popular posts from this blog

अगली यात्रा - प्रेरक प्रसंग

Y for Yourself

आज की मंथरा

आज का जीवन -मंत्र

बुजुर्गों की सेवा की जीते जी

स्त्री के अपमान का दंड

आपस की फूट, जगत की लूट

वाणी हमारे व्यक्तित्व का दर्पण है

मीठी वाणी - सुखी जीवन का आधार

वाणी बने न बाण