भगवान की कृपा

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भगवान की कृपा

Image by Pexels from Pixabay

भगवान निरन्तर हम पर कृपा करते रहते हैं लेकिन हम कभी-कभी उनकी कृपा को महसूस नहीं कर पाते। एक सुन्दर कथा के माध्यम से समझिए।

एक बार की बात है। बहुत तेज बारिश हो रही थी। दो मटके (घड़े) बाहर रखे हुए थे। बारिश में दोनों भीग रहे थे। थोड़ी देर के बाद जब बारिश बंद हुई तो एक मटका भर गया और दूसरा खाली रह गया।

जो मटका खाली रह गया, वह वर्षा से कहता है - अरी वर्षा! तू पक्षपात (भेदभाव) करती है। तूने इसे भर दिया है लेकिन मुझे नहीं भरा।

तब बारिश कहती है - मटके! तू ऐसा क्यों बोल रहा है? मैंने तुम दोनों मटकों पर बराबर बारिश की है। लेकिन तू अपना मुँह तो देख। तेरा मुँह नीचे की ओर है। तुझमें तो जल की एक बूंद को भी संभाल कर रखने की क्षमता नहीं है, चाहे मैं कितना ही जल तुझ पर बरसाती रहूँ।

दोस्तों! वह मटका उल्टा रखा हुआ था। गलती हमारी खुद की होती है लेकिन हम दोष दूसरों पर डालते रहते हैं। ठीक इसी तरह भगवान भी हम पर कृपा करते हैं लेकिन गलती हमारी ही होती है।

हमारी ही झोली छोटी पड़ जाये, तो भगवान को दोषी क्यों ठहराएं? जिस तरह से सूर्य देव सब पर बराबर धूप डालते हैं। अब हम खुद ही मुख मोड़ कर बैठ जायें, तो यह हमारी गलती है न कि सूर्य देवता की।

भगवान की कृपा केवल ऐसे संत जन ही समझ पाते हैं, जिनका मन पावन होता है। वे प्रत्येक कर्म में भगवान की कृपा का अनुभव करते हैं, चाहे कुछ अच्छा हो या बुरा।

दोस्तों! हर परिस्थिति में खुश रहो और भगवान की कृपा का अनुभव करो। भगवान की कृपा हम पर लगातार बरस रही है। बस! हम अनुभव नहीं कर पा रहे हैं।

एक बात और है कि हम भगवान से जीवन में क्या मांगें?

यदि किसी चीज की कमी है, तो आप भगवान से केवल और केवल उनकी कृपा मांगिये क्योंकि उनकी कृपा से सब कुछ मिल जाता है।

मांगने वाले खाली न लौटे, कितनी मिली खैरात न पूछो।

उनकी कृपा तो उनकी कृपा है, उनकी कृपा की बात न पूछो॥

ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि जो भगवान से प्यार करते हैं, उन्हें दुःख मिले और जो सब का अच्छा करे, उन्हें बुराई मिले। अगर ऐसा होता तो सभी लोग आज बुरे कर्म कर रहे होते। हाँ! यह केवल कलियुग का प्रभाव है जो सब का अच्छा करने पर भी बुराई मिल जाती है।

लेकिन अच्छा करने वाले लोग भगवान को बहुत पसंद हैं, बहुत प्रिय हैं। यह हमारी सोच है कि भक्तों को खुशी नहीं मिलती। सच्चा भक्त न खुशी चाहता है, न दुःख चाहता है। वह तो उसके नाम को हर समय लेना चाहता है, उसके गुण गाना चाहता है, क्योंकि जब हम सच में उसकी याद में होते हैं, तो कोई दुःख तकलीफ हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाती।

प्रह्लाद जी को भगवान ने कुछ होने नहीं दिया, मीराबाई ने विष पीया लेकिन भगवान ने उनकी रक्षा की।

सुख-दुःख हमें अनुभव होता है, लेकिन भगवान के भक्तों को रंच मात्र भी इसका भान नहीं रहता है और जो वास्तव में सच्चे भक्त हैं, वे यह भी ध्यान नहीं देते हैं कि कौन आदमी क्या कर रहा है। वह तो हमेशा अपने भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं। जैसे सुदामा जी महाराज। उन्होंने भगवान के दरबार में जाकर भी उनसे कुछ नहीं मांगा, क्योंकि वे जानते हैं कि भगवान तो बिना मांगे ही सबकी झोली भर देते हैं, जितनी कृपा का वह पात्र होता है। तो आप मन से, दिमाग से इस बात को निकाल दीजिये कि बारिश ने उसका मटका भर दिया और मेरा नहीं। सदा खुश रहिये और भगवान की भक्ति द्वारा अपनी पात्रता बढ़ाते रहिए।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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