शबरी की कथा

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शबरी की कथा

Image by Ralph from Pixabay

शबरी एक बदसूरत लड़की थी, पर दिल से वह बहुत अच्छी थी।

जब वह 14-15 साल की हुई, तभी उसके माता-पिता को उसके विवाह की चिंता होने लगी। शबरी की नाक के छेद बहुत बड़े-बड़े थे। होंठ भी बहुत मोटे-मोटे थे। रंग भी सांवला/काला था। उसकी शक्ल डरावनी सी थी, इसलिए कोई भी लड़का उसको पसंद नहीं कर रहा था।

शबरी के माता-पिता ने शबरी को दिखाए बिना उसकी शादी एक लड़के से तय कर दी।

शादी हो गई। जैसे ही लड़के ने शबरी को देखा, वह घबरा गया कि पूरी ज़िन्दगी इस लड़की के साथ कैसे बिताई जाएगी? वह शबरी को चुपचाप किसी जंगल में छोड़ कर भाग गया।

शबरी वहीं बैठ कर रोने लगी।

भगवान की कृपा से मतंग मुनि वहाँ से निकल रहे थे। मतंग मुनि ने शबरी को देखा और पूछा, “बेटी! तुम यहाँ क्यों बैठी हो? कहाँ जाना है?”

शबरी ने अपने पति द्वारा यहाँ छोड़ कर भाग जाने की बात बताई।

मुनि ने कहा, “बेटी! यहाँ जंगली जानवर आते रहते हैं। तुम मेरे साथ मेरी कुटिया में रहो।”

शबरी मुनि के साथ उनकी कुटिया में चली गई। अब वह कुटिया की सफाई करती, फल-फूल चुन कर लाती। सुबह बहुत जल्दी उठ कर भगवान की सेवा करती।

मतंग मुनि काफी बूढ़े हो रहे थे। एक दिन उन्होंने शबरी को बुलाया और कहा, “बेटी! मैं अब दुनिया से जाने वाला हूँ। तुम इस कुटिया में ही रहना।”

शबरी रोने लगी, “आप ही तो हो, जिन्होंने मुझे पिता का प्यार दिया। अब आप भी जा रहे हो। मैं तो अकेली रह जाऊँगी।”

मुनि ने अंतिम साँसे लेते हुए शबरी से कहा, “तुम भगवान की सेवा करती रहना। तुमसे मिलने इस कुटिया में स्वयं भगवान आएंगे।”

मतंग मुनि ने आँखें बंद कर ली।

‘क्या मेरी कुटिया में भगवान् आयेंगे? कब आयेंगे? कब आयेंगे मेरी कुटिया में भगवान? मेरी कुटिया में तो भगवान् आयेंगे....। अरे....अरे....मेरी कुटिया तो गंदी लग रही है, उसे जल्दी से साफ़ कर दूं।’

शबरी तो मानो पागल हो गई। अब तो शबरी रोज भगवान के आने का इंतजार करने लगी। सब ऋषि-मुनियों के उठने से पहले ही उठ जाती। भगवान के आने के लिए वह हर रास्ते, हर जगह की सफाई कर देती।

शबरी सुबह-सुबह नदी में नहा-धोकर, रास्ते से भगवान के लिए फल-फूल ले आती। वह प्रतिदिन पलकें बिछाए भगवान के आने का इंतजार करती और सारे रास्ते को फूलों से सजा कर रखती। क्या पता कब भगवान आ जाएं? प्रतिदिन भगवान् के लिए कोई न कोई फल रखती। उसे चखकर देखती, मीठा होने पर भगवान को खिलाने के लिए रख देती।

रात होने पर उसे लगता आज भगवान नहीं आये, तो कल जरुर आयेंगे।

फिर अगले दिन सुबह से भगवान के आने की तैयारी का क्रम शुरू हो जाता।

शबरी को देखकर ऋषि मुनियों के शिष्य उसे कहते, “तुम्हारी कुटिया में कहाँ से भगवान आयेंगे? भगवान तो बड़े-बड़े ऋषि मुनियों की कुटिया में जायेंगे।”

परन्तु शबरी को अपना लक्ष्य पता था। उसे पूर्ण विश्वास था कि भगवान उसकी कुटिया में अवश्य आएंगे।

दिन बीतते गए, साल बीतते गए। शबरी इसी तरह रोज भगवान के इंतज़ार में लगी रहती। अब शबरी वृद्ध भी हो गई थी, परन्तु मन में दृढ़ निश्चय था कि “मेरी कुटिया में भगवान अवश्य आएंगे।”

जब श्री राम और लक्ष्मण, सीता की खोज करते हुए वहाँ आये, तो लोगों में उत्साह देखते ही बनता था।

“देखो....देखो....भगवान राम आए हैं। साथ में भैया लक्ष्मण भी हैं।”

“सभी ऋषि मुनि भगवान के लिए तपस्या करते हैं, आज उनकी तपस्या सार्थक हो गयी। देखो! भगवान स्वयं चलकर उनकी कुटिया में पधार रहे हैं।”

“हमने भी इनके दर्शन कर लिए, हमारा जन्म भी सार्थक हो गया।”

“अरे! अरे! देखो, वह तो सीधा शबरी की कुटिया में जा रहे हैं। यह क्या लीला है, भगवन्?”

यह कोई लीला नहीं, यह तो भगवान का प्रेम है। बड़े-बड़े ऋषि मुनि भगवान से प्रार्थना करते रह गए, “भगवन्! कभी तो हमारी कुटिया में पधारें। एक बार ही सही, केवल एक बार भगवन्....।”

आज तो शबरी के पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे और पड़ें भी कैसे? आज भगवान जो उसके घर पधारे हैं। शबरी के प्रेम के आगे भगवान आने को विवश हो गए। कैसे न आते?

शबरी ने जैसे ही भगवान को देखा, अपनी सुध-बुध सब कुछ भूल गई।

भगवान के इंतज़ार में बिछी पलकें, भगवान को देखते ही झपकना भूल गई। बस! वह तो भगवान को प्यार से देखती रह गई। पलकों ने आंसुओं की बारिश कर दी। भीगी पलकों से शबरी भगवान की सेवा में लग गई।

शबरी ने दोनों हाथों को जोड़कर, भगवान को प्यार से अपने पास बैठाया। फिर खुद जमीन पर बैठकर भगवान को बेर खिलाने लगी। हर बेर को पहले खुद खाकर देखती, यदि मीठा हुआ तो भगवान को देती।

भगवान भी शबरी के प्रेम में वशीभूत होकर शबरी के जूठे बेर खाते जा रहे थे।

कितने प्यारे हैं हमारे भगवान् जो भक्त के प्रेमभाव में डूब जाते हैं।

उसके बाद भगवान ने शबरी को अपने धाम में भेज दिया, ऐसे धाम जो कि करोड़ों-करोड़ों पुण्यों से भी प्राप्त नहीं होता।

जय श्री राम!

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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