देरी का कारण - विकल्प
👼👼💧💧👼💧💧👼👼
देरी का कारण - विकल्प
Image by Andreas Lischka from Pixabay
एक धनी व्यक्ति का बटुआ बाजार में गिर गया। उसे घर पहुंच कर इस बात का पता चला। बटुए में जरूरी कागजों के अलावा कई हजार रुपये भी थे। फौरन ही वह मंदिर गया और प्रार्थना करने लगा कि हे भगवान! अपना बटुआ वापिस मिलने पर प्रसाद चढ़ाऊंगा, गरीबों को भोजन कराऊंगा आदि।
संयोग से वह बटुआ एक बेरोजगार युवक को मिला। बटुए पर उसके मालिक का नाम लिखा था। इसलिए उस युवक ने सेठ के घर पहुंच कर बटुआ उन्हें दे दिया।
सेठ ने तुरंत बटुआ खोलकर देखा। उसमें सभी कागजात और रुपये यथावत थे। सेठ ने प्रसन्न हो कर युवक की ईमानदारी की प्रशंसा की और उसे बतौर इनाम कुछ रुपये देने चाहे, जिन्हें लेने से युवक ने मना कर दिया।
इस पर सेठ ने कहा, अच्छा! कल फिर आना।
युवक दूसरे दिन आया तो सेठ ने उसकी खूब खातिरदारी की। युवक चला गया।
युवक के जाने के बाद सेठ अपनी इस चतुराई पर बहुत प्रसन्न था कि वह तो उस युवक को सौ रुपये देना चाहता था, पर युवक बिना कुछ लिए सिर्फ खा-पी कर ही चला गया।
उधर युवक के मन में इन सब का कोई प्रभाव नहीं था, क्योंकि उसके मन में न कोई लालसा थी और न ही बटुआ लौटाने के अलावा और कोई विकल्प ही था।
सेठ बटुआ पाकर यह भूल गया कि उसने मंदिर में कुछ वचन भी दिए थे।
सेठ ने अपनी इस चतुराई का अपने मुनीम और सेठानी से जिक्र करते हुए कहा कि देखो वह युवक कितना मूर्ख निकला। हजारों का माल बिना कुछ लिए ही दे गया।
सेठानी ने कहा, तुम उल्टा सोच रहे हो। वह युवक ईमानदार था। उसके पास तुम्हारा बटुआ लौटा देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। उसने बिना खोले ही बटुआ लौटा दिया। वह चाहता तो सब कुछ अपने पास ही रख लेता। तुम क्या करते? ईश्वर ने दोनों की परीक्षा ली। वह पास हो गया, तुम फेल। अवसर स्वयं तुम्हारे पास चल कर आया था, तुमने लालच के वश उसे लौटा दिया। अब अपनी गलती को सुधारो और जाओ उसे खोजो। उसके पास ईमानदारी की पूंजी है, जो तुम्हारे पास नहीं है। उसे काम पर रख लो।
सेठ तुरंत ही अपने कर्मचारियों के साथ उस युवक की तलाश में निकल पड़ा। कुछ दिनों बाद वह युवक किसी और सेठ के यहाँ काम करता मिला।
सेठ ने युवक की बहुत प्रशंसा की और बटुए वाली घटना सुनाई, तो उस सेठ ने बताया, उस दिन इसने मेरे सामने ही बटुआ उठाया था। मैं तभी अपने गार्ड को लेकर इसके पीछे गया। देखा कि यह तुम्हारे घर जा रहा है। तुम्हारे दरवाजे पर खड़े हो कर मैंने सब कुछ देखा व सुना और फिर इसकी ईमानदारी से प्रभावित होकर इसे अपने यहाँ मुनीम रख लिया। इसकी ईमानदारी से मैं पूरी तरह निश्चिंत हूँ।
बटुए वाला सेठ खाली हाथ लौट आया। पहले उसके पास कई विकल्प थे, उसने निर्णय लेने में देरी की। उसने एक विश्वासपात्र खो दिया। युवक के पास अपने सिद्धांत पर अटल रहने का नैतिक बल था। उसने बटुआ खोलने के विकल्प का प्रयोग ही नहीं किया। युवक को ईमानदारी का पुरस्कार मिल गया। दूसरे सेठ के पास निर्णय लेने की क्षमता थी। उसे एक उत्साही, सुयोग्य और ईमानदार मुनीम मिल गया।
जिन वस्तुओं के विकल्प होते हैं, उन्हीं में देरी होती है। विकल्पों पर विचार करना गलत नहीं है, लेकिन विकल्पों पर ही विचार करते रहना गलत है। हम ‘यह या वह’ के चक्कर में फंसे रह जाते हैं।
किसी संत ने कहा है - विकल्पों में उलझकर निर्णय पर पहुंचने में बहुत देर लगाने से लक्ष्य की प्राप्ति कठिन हो जाती है।
--
सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
विनम्र निवेदन
यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।
धन्यवाद।
Bahut Sundar Motivational Story 👋👋👋👋🙏
ReplyDelete