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Showing posts from September, 2025

शब्दों का सही प्रयोग

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  शब्दों का सही प्रयोग  एक बार एक राजा ने स्वप्न में देखा कि उसके सारे दाँत टूट गये हैं, केवल सामने का एक बड़ा दाँत ही मुँह में बचा है। सुबह राजा ने दरबार में अपना स्वप्न सुनाया, और उसका प्रतिफल जानना चाहा। मंत्रियों ने सलाह दी कि स्वप्न विशेषज्ञों को बुलाकर स्वप्न का फलादेश पूछा जाए।  राज्य में ढिंढोरा फिरवा कर घोषणा की गयी कि जो भी विद्वान ज्ञानी राजा को उनके स्वप्न का फलादेश बतायेगा, उसे उचित ईनाम दिया जायेगा। कई व्यक्ति दरबार में आये, परन्तु कोई भी राजा को सही जवाब से संतुष्ट नहीं कर सका।  एक दिन एक विद्वान व्यक्ति जिसने काशी से विद्या प्राप्त की थी, दरबार में आया और बोला  - महाराज! मैं आपके स्वप्न का सही फलादेश बता सकता हूँ।  राजा सहित सभी दरबारी जिज्ञासा से उस व्यक्ति की ओर देखने लगे।  राजा ने अपना स्वप्न सुनाकर कर कहा - बताइये, मेरे इस स्वप्न का फलादेश क्या है?  उस व्यक्ति ने कहा - राजन्! आपका यह स्वप्न तो बहुत बेकार है। इसके फल स्वरूप आपके सामने ही आपके परिवार के सभी सदस्य मर जायेंगे और आप सबके बाद मरेंगे। यह सुनते ही राजा को क्रोध आ गया और...

एक रिश्ता या सौ रिश्ते

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  एक रिश्ता या सौ रिश्ते एक फोटो कॉपी की दुकान पर एक लड़का उम्र लगभग 22 वर्ष, एक लड़की उम्र लगभग 19 वर्ष, और एक व्यक्ति उम्र लगभग 35 वर्ष, दाखिल हुए। वे बहुत जल्दबाजी में थे और उन्होंने कुछ पहचान पत्र जैसे आधार कार्ड और मैट्रिक सर्टिफिकेट फोटो कॉपी के लिए दिए। लड़की कुछ उदास और चिंतित दिख रही थी। दुकान के मालिक, जो लगभग 45 वर्ष के थे, ने पूछा कि कितनी कॉपी करनी हैं और किसलिए करनी हैं। लड़की के मुंह से निकला, “दस-दस ही कर दीजिए, पता नहीं दुबारा करने का मौका मिलेगा या नहीं, पता नहीं जिंदा भी न छोड़ें।“ साथ आए आदमी ने कहा, “अरे, तुम लोग चिंता मत करो, मैं हूं न तुम्हारे साथ, कुछ नहीं होगा।“ सार्वजनिक स्थान होने के कारण उन लोगों ने लड़की को चुप रहने का इशारा किया। तभी दुकानदार ने लड़की से पूछा, “क्या बात है बेटा? तुम कुछ उदास लग रही हो। अगर कोई परेशानी हो तो मुझे बता सकती हो, मैं तुम्हारे पापा की तरह हूं।“ पापा का नाम सुनते ही लड़की रुआंसी हो गई और बोली, “मैं इस लड़के से प्यार करती हूं और शादी करना चाहती हूं, मगर मेरे घर वाले तैयार नहीं हैं। इसलिए घर से भाग कर आई हूं, क्योंकि ये लड़का दूसरे धर्म ...

विश्वास

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 विश्वास एक व्यक्ति की नई नई शादी हुई और वह अपनी पत्नी के साथ वापिस आ रहा था। रास्ते में वे दोनों एक बड़ी झील को नाव के द्वारा पार कर रहे थे, तभी अचानक एक भयंकर तूफ़ान आ गया। वह आदमी वीर था लेकिन औरत बहुत डरी हुई थी क्योंकि हालात बिल्कुल खराब थे। नाव बहुत छोटी थी और तूफ़ान वास्तव में भयंकर था और दोनों किसी भी समय डूब सकते थे। लेकिन वह आदमी चुपचाप, निश्चल और शान्त बैठा था जैसे कि कुछ नहीं होने वाला। औरत डर के मारे कांप रही थी। वह बोली, “क्या तुम्हें डर नहीं लग रहा। ये हमारे जीवन का आखिरी क्षण हो सकता है। ऐसा नहीं लगता कि हम दूसरे किनारे पर कभी पहुंच भी पायेंगे। अब तो कोई चमत्कार ही हमें बचा सकता है, वर्ना हमारी मौत निश्चित है। क्या तुम्हें बिल्कुल डर नहीं लग रहा? कहीं तुम पागल वागल या पत्थर वत्थर तो नहीं हो?“ वह आदमी खूब हँसा और एकाएक उसने म्यान से तलवार निकाल ली। औरत अब और परेशान हो गई कि वह क्या कर रहा था? तब वह उस नंगी तलवार को उस औरत की गर्दन के पास ले आया, इतना पास कि उसकी गर्दन और तलवार के बीच बिल्कुल कम फर्क बचा था क्योंकि तलवार लगभग उसकी गर्दन को छू रही थी। वह अपनी पत्नी से बोल...

“कामतानाथ प्रसाद के रिश्तेदार“

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  “कामतानाथ प्रसाद के रिश्तेदार“ एक दिन कामतानाथ जी सैर से लौट रहे थे, तो उनके पीछे एक कुतिया और उसका बच्चा आने लगे। पहले तो उन्होंने अनदेखा कर दिया। पर जब वे साथ-साथ घर तक पहुँच गए तो उन्होंने दोनों को दूध और ब्रेड खिलाई। इस तरह कई दिन तक होता रहा और एक दिन दोनों प्राणी मोहवश घर के अंदर आ गए और फ़िर वे भी उसी घर के सदस्य बन गए। दोनों को नाम भी दे दिया गया, झूरी और झबला। ऐसे ही किसी अन्य दिन कामतानाथ जी ने पार्क में घायल बंदरिया के बच्चे की मरहम पट्टी कर दी, तो वह भी अपने बच्चे को लेकर उनके साथ हो ली और नाम मिला, चिंकी और टीलू। समय अपनी गति से गुज़रता जा रहा है। अब तो सभी प्राणी कामतानाथ जी के पूरे घर में उनके साथ विचरण करते, छत से लेकर, ग्राउंड फ्लोर तक, जिसका जहाँ मन करता है, वहाँ रहता है। झबला, झूरी, चिंकी और टीलू तो उनके साथ ही सोते। पक्षियों का परिवार भी बढ़ता जा रहा है। सब बड़े आनंद से उनके साथ अपने दिन गुज़ार रहे हैं। उनकी बेटी को पता चला, तो उसने गुस्सा करते हुए कहा कि आपने तो घर को चिड़ियाघर बना दिया है। इतने बड़े मकान को किराए पर चढ़ाते तो कुछ किराया भी मिलता। और वह हँसकर उसकी बा...

बावर्ची !!

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 बावर्ची !! आज फिर से साहब का दिमाग उचट गया था ऑफिस में! बाहर बारिश हो रही थी, मन किया कि पास वाले ढाबे पर चलकर कुछ खाया जाए। सो ऑफिस का काम फटाफट निपटा कर पहुँच गए साहब ढाबे में। रामू दौड़ता हुआ आया, हाथ  में पानी का गिलास मेज पर रखते हुए साहब को नमस्ते की और बोला, “क्या बात है, साहब? काफी दिनों बाद आये हैं आज आप?“ “हाँ रामू! मैं शहर से बाहर गया था।“ साहब ने जबाब दिया। “आप बैठो साहब, मैं आपके लिए कुछ खाने को लाता हूँ।“ वह एक साधारण-सा ढाबा था, मगर पता नहीं इतने बड़े साहब को वहाँ आना बहुत ही अच्छा लगता था। साहब को कुछ भी आर्डर देने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी, बल्कि उनका मनपसंद भोजन अपने आप ही रामू ले आता था। स्वाद भी बहुत भाता था साहब को यहां के खाने का। पता नहीं रामू को कैसे पता लग जाता था कि साहब को कब क्या अच्छा लगेगा और पैसे भी काफी कम लगते थे यहां पर। साहब बैठे सोच ही रहे थे कि चिर-परिचित पकोड़ों की खुशबू से साहब हर्षित हो गए। “अरे रामू! तू बड़ा जादूगर है रे! इस मौसम में इससे अच्छा और कुछ हो ही नहीं सकता है,“ साहब पकोड़े खाते हुए बोले। “अरे साहब! पेट भर कर खाइयेगा, इसके बाद अदरक वा...

कैसे पाएं जीवन में सफलता

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  कैसे पाएं जीवन में सफलता एक तिपाई अपने तीनों पैरों पर ही खड़ी हो सकती है। यदि उनमें से एक पैर न हो या कमज़ोर हो, लड़खड़ाने वाला हो तो वह तिपाई कभी खड़ी नहीं रह सकती। इसी प्रकार एक संतुलित व सफल जीवन के लिए तीन पायों का होना अनिवार्य है। क्या आप जानना चाहते हैं कि वे तीन पाए कौन से हैं? हाँ, तो सुनो! वे तीन पाए हैं- पैसा, पुरुषार्थ और पुण्य (3p)।   यदि इनमें से एक भी पाया ढीला है, तो हम जीवन में कभी सफल नहीं हो सकते। पैसा तो बहुत है, पर हम उसकी वृद्धि के लिए मेहनत अर्थात् पुरुषार्थ नहीं करते, तो वह एक दिन समाप्त हो ही जाएगा। पैसा भी है, हम मेहनत भी कर रहे हैं, लेकिन पैसा टिकता ही नहीं। तो इसका अर्थ है कि हमारे पास उसे भोगने के लिए पर्याप्त पुण्य नहीं है। वह जिस रास्ते से आता है, उसी रास्ते से चला जाता है।  गौर से देखा जाए तो इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण है - पुण्य। पुण्य होगा तो गया हुआ पैसा भी हम अपने पुरुषार्थ से वापिस पा सकते हैं। एक व्यक्ति पिछले 10-12 साल से के.बी.सी. यानि ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में जाने के लिए कठोर परिश्रम कर रहा था। पैसा भी लगाया, घण्टों नगर की लाइब्रेरी म...

कड़वा वचन

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 कड़वा वचन  सुंदर नगर में एक सेठ रहते थे। उनमें हर गुण था- नहीं था तो बस खुद को संयत में रख पाने का गुण। जरा-सी बात पर वे बिगड़ जाते थे। आसपास तक के लोग उनसे परेशान थे। खुद उनके घर वाले तक उनसे परेशान होकर बोलना छोड़ देते। किंतु, यह सब कब तक चलता? वे पुनः उनसे बोलने लगते। इस प्रकार काफी समय बीत गया, लेकिन सेठ की आदत नहीं बदली। उनके स्वभाव में तनिक भी फर्क नहीं आया। अंततः एक दिन उसके घरवाले एक साधु के पास गये और अपनी समस्या बताकर बोले - “महाराज! हम उनसे अत्यधिक परेशान हो गये हैं, कृपया कोई उपाय बताइये।”  तब, साधु ने कुछ सोचकर कहा - “सेठ जी को मेरे पास भेज देना।” “ठीक है, महाराज,” कहकर सेठ जी के घरवाले वापस लौट गये। घर जाकर उन्होंने सेठ जी को अलग-अलग उपायों के साथ उन्हें साधु महाराज के पास ले जाना चाहा। किंतु सेठ जी साधु-महात्माओं पर विश्वास नहीं करते थे। अतः वे साधु के पास नहीं आये। तब एक दिन साधु महाराज स्वयं ही उनके घर पहुंच गये। वे अपने साथ एक गिलास में कोई द्रव्य लेकर गये थे। साधु को देखकर सेठ जी की त्योरियां चढ़ गयी। परंतु घरवालों के कारण वे चुप रहे। साधु महाराज सेठ जी से...

अपनी मदद खुद करें

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 अपनी मदद खुद करें  किसी गाँव में एक पुजारी रहता था। वह भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। एक बार उसके गाँव में बाढ़ आई। गाँव के सभी लोग ज़रूरत का सामान लेकर ऊंचे स्थान की ओर जाने लगे। जाते जाते लोगों ने पुजारी को भी चलने को कहा, पर पुजारी ने कहा कि तुम लोग जाओ मुझे विश्वास है कि भगवान मेरी रक्षा करने जरूर आएगा। पुजारी भगवान का इंतज़ार करने लगा। तभी एक जीप पुजारी के सामने आकर रुका। जीप में बैठे लोगों ने पुजारी को चलने को कहा, पर पुजारी ने फिर वही जवाब दिया - तुम लोग जाओ। मुझे तो भगवान बचाने आएगा। पानी बढ़ता ही जा रहा था। कुछ समय बाद एक नाव वाला पुजारी के पास आया और चलने को कहा, पर पुजारी ने उससे भी वही बात कही। पानी अब कंधे तक आ गया था, पर पुजारी को अब भी विश्वास था कि भगवान उसे बचाने जरूर आएगा। पानी और बढ़ने पर वह घर की छत पर चढ़ गया और भगवान का इंतज़ार करने लगा। थोड़ी देर में एक बचाव हेलिकॉप्टर आता है और ऊपर से रस्सी फेंकते हुए पुजारी को पकड़ लेने को कहता है, पर अब भी पुजारी वही बात दोहराता है कि तुम लोग जाओ। मुझे तो भगवान बचाने आएगा। पानी बढ़ता गया। आखिरकार पानी इतना बढ़ गया कि पुजारी उसमे डू...

चालाकी का परिणाम

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 चालाकी का परिणाम एक गाँव में एक कंजूस बूढ़ी महिला रहती थी। उसके पास धन-दौलत तो बहुत थी, लेकिन उसके स्वभाव के कारण कोई उसे पसंद नहीं करता था। घर में उसकी कई नौकरानियाँ थीं, जिन पर वह दिन-रात हुकूमत चलाती थी। महिला की आदत थी कि जैसे ही सुबह उसके घर का मुर्गा बाँग देता, वह उसी समय जाग जाती। मुर्गे की बाँग सुनते ही वह नौकरानियों को जोर-जोर से आवाज़ देती और तुरंत काम में जुटा देती। चाहे अँधेरा हो या ठंडी सुबह, नौकरानियों को बर्तन माँजने, आँगन साफ़ करने और अन्य काम करने के लिए दौड़ाया जाता। नौकरानियों को यह आदत बिल्कुल पसंद नहीं थी। वे चाहती थीं कि सुबह देर तक सो सकें, लेकिन मुर्गे की बाँग और मालकिन की आवाज़ से उनकी नींद हर दिन टूट जाती। धीरे-धीरे उनके मन में मुर्गे के प्रति चिढ़ और गुस्सा बढ़ता गया। एक दिन उन्होंने आपस में सलाह की - “अगर यह मुर्गा नहीं रहेगा, तो हमारी मुसीबत आधी हो जाएगी। बूढ़ी मालकिन देर तक सोती रहेगी और हमें भी चैन से सोने का मौका मिलेगा।“ सभी इस बात से सहमत हो गईं। रात को जब सब सो गए, नौकरानियों ने चुपके से मुर्गे को पकड़कर मार डाला और सोचने लगीं कि अब सुबह का झंझट खत्म हो ज...

दुष्टदलन

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  दुष्टदलन कंस की मृत्यु के पश्चात् उसका ससुर जरासन्ध बहुत ही क्रोधित था। उसने ’कृष्ण व बलराम को मारने हेतु मथुरा पर 17 बार आक्रमण किया। प्रत्येक पराजय के बाद वह अपने विचारों का समर्थंन करने वाले तमाम राजाओं से सम्पर्क करता और उनसे महागठबंधन बनाता और मथुरा पर हमला करता था। और श्री कृष्ण पूरी सेना को मार देते, मात्र जरासन्ध को ही छोड़ देते... यह सब देखकर श्री बलराम जी बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने श्री कृष्णजी से कहा कि बार-बार जरासन्ध हारने के बाद पृथ्वी के कोनों कोनों से दुष्टों के साथ महागठबंधन कर हम पर आक्रमण कर रहा है और तुम पूरी सेना को मार देते हो किन्तु असली खुराफात करने वाले को ही छोड़ दे रहे हो...?? तब हंसते हुए श्री कृष्ण ने बलराम जी को समझाया... हे भ्राताश्री! मैं जरासन्ध को बार-बार जानबूझकर इसलिए छोड़ रहा हूँ कि ये जरासन्ध पूरी पृथ्वी के दुष्टों को खोजकर उनके साथ महागठबंधन करता है और मेरे पास लाता है और मैं बहुत ही आसानी से एक ही जगह रहकर धरती के सभी दुष्टों को मार दे रहा हूँ। नहीं तो मुझे इन दुष्टों को मारने के लिए पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाना पड़ता और बिल में से खोज-खोज कर न...

भक्त गरीब क्यों?

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  भक्त गरीब क्यों? एक बार नारद जी ने भगवान् से प्रश्न किया कि प्रभु! आपके भक्त गरीब क्यों होते हैं?  भगवान् बोले - नारद जी! मेरी कृपा को समझना बहुत कठिन है।  इतना कहकर भगवान् नारद के साथ साधु भेष में पृथ्वी पर पधारे और एक सेठ जी के घर भिक्षा मांगने के लिए दरवाजा खटखटाने लगे। सेठ जी बिगड़ते हुए दरवाजे की तरफ आए और देखा तो दो साधु खड़े हैं। भगवान् बोले - भैया! बहुत जोरों की भूख लगी है। थोड़ा-सा खाना मिल जाए।  सेठ जी बिगड़ कर बोले - “तुम दोनों को शर्म नहीं आती। तुम्हारे बाप का माल है क्या? कर्म करके खाने में शर्म आती है, जाओ, जाओ, किसी होटल में खाना मांगना, जहाँ खाना बेचा जाता है। नारद जी बोले, “देखा, प्रभु! यह आपके भक्तों और आपका निरादर करने वाला सुखी प्राणी है। इसको अभी श्राप दीजिये।“  नारद जी की बात सुनते ही भगवान् ने उस सेठ को अधिक धन-सम्पत्ति बढ़ाने वाला वरदान दे दिया। इसके बाद भगवान् नारद जी को लेकर एक बूढ़ी मैया के घर में गए। उसकी एक छोटी-सी झोपड़ी थी, जिसमें एक गाय के अलावा और कुछ भी नहीं था। जैसे ही भगवान् ने भिक्षा के लिए आवाज लगायी, बूढ़ी मैया बहुत खुशी के साथ ब...

संसार-वृक्ष

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  संसार-वृक्ष एक बार विदुर जी संसार भ्रमण करके धृतराष्ट्र के पास पहुँचे तो धृतराष्ट्र ने कहा, “विदुर जी! सारा संसार घूमकर आये हो आप, कहिये कहाँ-कहाँ पर क्या-क्या देखा आपने?“ विदुर जी बोले, “राजन्! कितने आश्चर्य की बात देखी है मैंने! सारा संसार लोभ शृंखलाओं में फँस गया है। काम, क्रोध, लोभ, भय के कारण उसे कुछ भी दिखाई नहीं देता, पागल हो गया है। आत्मा को वह जानता ही नहीं।“ तब उन्होंने एक कथा सुनाई। एक बहुत भयानक वन था। उसमें भूला-भटका हुआ एक व्यक्ति जा पहुँचा। मार्ग उसे मिला नहीं, परन्तु उसने देखा कि वन में शेर, चीते, रीछ, हाथी और न जाने कितने ही पशु दहाड़ रहे हैं। भय से उसके हाथ-पाँव काँपने लगे। बिना पीछे देखे वह भागने लगा। भागता-भागता एक स्थान पर पहुँच गया। वहाँ देखा कि पाँच विषधर साँप फन फैलाये फुङ्कार रहे हैं। उनके पास ही एक वृद्ध स्त्री खड़ी है। महाभयंकर साँप जब इसकी और लपका तो वह फिर भागा और अन्त में हाँफता हुआ एक गड्ढे में जा गिरा जो घास और पौधों से ढका पड़ा था।  सौभाग्य से गिरते समय एक बड़े वृक्ष की शाखा उसके हाथ में आ गई। उसको पकड़कर वह लटकने लगा। तभी उसने नीचे देखा कि एक कुआ...

एक शिक्षाप्रद मार्मिक कहानी

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  एक शिक्षाप्रद मार्मिक कहानी बहुत समय पहले की बात है, एक बड़े राज्य में एक न्यायप्रिय राजा राज्य करता था। एक दिन एक अजनबी व्यक्ति दरबार में उपस्थित हुआ और राजा से नौकरी की विनती की। राजा ने उससे पूछा, “तुम क्या कार्य करते हो?“ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “महाराज, मैं किसी के व्यवहार और चाल-चलन को देखकर उसकी असलियत का पता लगा सकता हूँ।“ राजा को उसकी बात रोचक लगी और उन्होंने उसे नौकरी दे दी। प्रारंभ में उसे घोड़ों के अस्तबल की देखरेख का काम सौंपा गया। कुछ माह बाद राजा ने अपने सबसे प्रिय और सुंदर घोड़े के बारे में उस सेवक से पूछा। सेवक ने विनम्रता से कहा, “महाराज, यह घोड़ा नस्ली नहीं है।“ राजा को आश्चर्य हुआ क्योंकि वह घोड़ा उसे बहुत प्रिय था। संदेह के समाधान हेतु राजा ने उस व्यक्ति को बुलवाया जिससे उसने वह घोड़ा खरीदा था। पूछताछ करने पर उस व्यक्ति ने बताया, “महाराज, यह सत्य है। इस घोड़े की माँ बहुत पहले मर गई थी। तब यह एक गाय के साथ पला-बढ़ा और उसी का दूध पिया।“ राजा हैरान था। उसने सेवक से पूछा, “तुमने यह कैसे पहचाना?“ सेवक बोला, “महाराज, घोड़े चारा खाते समय मुँह ऊपर उठाते हैं, पर यह घोड़ा गाय...