एक शिक्षाप्रद मार्मिक कहानी
एक शिक्षाप्रद मार्मिक कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक बड़े राज्य में एक न्यायप्रिय राजा राज्य करता था। एक दिन एक अजनबी व्यक्ति दरबार में उपस्थित हुआ और राजा से नौकरी की विनती की। राजा ने उससे पूछा, “तुम क्या कार्य करते हो?“
उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “महाराज, मैं किसी के व्यवहार और चाल-चलन को देखकर उसकी असलियत का पता लगा सकता हूँ।“
राजा को उसकी बात रोचक लगी और उन्होंने उसे नौकरी दे दी। प्रारंभ में उसे घोड़ों के अस्तबल की देखरेख का काम सौंपा गया।
कुछ माह बाद राजा ने अपने सबसे प्रिय और सुंदर घोड़े के बारे में उस सेवक से पूछा। सेवक ने विनम्रता से कहा, “महाराज, यह घोड़ा नस्ली नहीं है।“
राजा को आश्चर्य हुआ क्योंकि वह घोड़ा उसे बहुत प्रिय था। संदेह के समाधान हेतु राजा ने उस व्यक्ति को बुलवाया जिससे उसने वह घोड़ा खरीदा था। पूछताछ करने पर उस व्यक्ति ने बताया, “महाराज, यह सत्य है। इस घोड़े की माँ बहुत पहले मर गई थी। तब यह एक गाय के साथ पला-बढ़ा और उसी का दूध पिया।“
राजा हैरान था। उसने सेवक से पूछा, “तुमने यह कैसे पहचाना?“
सेवक बोला, “महाराज, घोड़े चारा खाते समय मुँह ऊपर उठाते हैं, पर यह घोड़ा गाय की तरह नीचे झुककर घास खा रहा था। इससे मुझे समझ आ गया कि यह गाय के साथ पला है।“
राजा सेवक की तीव्र बुद्धि से प्रभावित हुआ और उसे इनामस्वरूप कुछ बकरियाँ, मुर्गियाँ और खाद्य सामग्री दी।
कुछ समय बाद, राजा ने उसी सेवक को रानी की सेवा में लगा दिया। कुछ महीनों पश्चात राजा ने उससे रानी के बारे में भी पूछा। सेवक ने हाथ जोड़ते हुए कहा, “क्षमा करें महाराज, पर रानी खानदानी नहीं हैं।“
राजा को फिर आश्चर्य हुआ। उसने तुरंत अपनी सास को बुलवाया। सास ने सिर झुकाकर बताया, “यह सत्य है महाराज। हमारी असली बेटी बचपन में चल बसी थी। इसलिए हमने एक अनाथ बच्ची को गोद लिया और वही आपकी रानी बनी।“
राजा ने सेवक से फिर प्रश्न किया, “तुमने यह कैसे पहचाना?“
सेवक बोला, “महाराज, सच्चा खानदानी व्यक्ति अपने से नीचे कार्य करने वालों से प्रेम और सम्मान से व्यवहार करता है। आपकी रानी नौकरों के साथ बहुत कठोर व्यवहार करती थीं। तभी मैं समझ गया कि यह खानदानी नहीं हैं।“
राजा और अधिक प्रभावित हुआ और सेवक को फिर वही इनाम देकर उसे दरबारी नियुक्त कर लिया।
समय बीतता गया। एक दिन राजा ने जिज्ञासावश सेवक से स्वयं के बारे में पूछा, “मेरे बारे में भी बताओ।“
सेवक ने सिर झुकाकर कहा, “महाराज, मैं कह सकता हूँ, पर आप वचन दें कि मुझे दंड नहीं देंगे।“
राजा ने वचन दिया।
सेवक बोला, “महाराज, आप भी खानदानी नहीं हैं।“
राजा क्रोधित तो हुआ, पर वचन के कारण शांत रहा और अपनी माता के पास गया।
महारानी ने भारी मन से स्वीकारा, “बेटा, यह सच है। संतान न होने के कारण हमने एक चरवाहे के पुत्र को गोद लिया और वही तुम हो।“
राजा स्तब्ध रह गया। उसने सेवक को बुलाया और पूछा, “तुमने यह कैसे जाना?“
सेवक बोला, “महाराज, सच्चे राजा अपने सेवकों को हीरे-जवाहरात देते हैं। आपने हर बार मुझे केवल बकरियाँ, मुर्गियाँ और खाना ही दिया। इससे मुझे समझ आ गया कि आप खानदानी नहीं हैं।“
निष्कर्ष :--
यह कहानी हमें सिखाती है कि किसी की हैसियत देखकर उसकी असलियत नहीं जानी जा सकती। हैसियत समय के साथ बदलती रहती है, पर असलियत, जो कि व्यक्ति के व्यवहार, सोच और नीयत में छिपी होती है, वह कभी नहीं बदलती। असली पहचान उसके कर्म और चरित्र से होती है, न कि उसके पद और प्रतिष्ठा से।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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