“कामतानाथ प्रसाद के रिश्तेदार“

  “कामतानाथ प्रसाद के रिश्तेदार“

एक दिन कामतानाथ जी सैर से लौट रहे थे, तो उनके पीछे एक कुतिया और उसका बच्चा आने लगे। पहले तो उन्होंने अनदेखा कर दिया। पर जब वे साथ-साथ घर तक पहुँच गए तो उन्होंने दोनों को दूध और ब्रेड खिलाई। इस तरह कई दिन तक होता रहा और एक दिन दोनों प्राणी मोहवश घर के अंदर आ गए और फ़िर वे भी उसी घर के सदस्य बन गए। दोनों को नाम भी दे दिया गया, झूरी और झबला। ऐसे ही किसी अन्य दिन कामतानाथ जी ने पार्क में घायल बंदरिया के बच्चे की मरहम पट्टी कर दी, तो वह भी अपने बच्चे को लेकर उनके साथ हो ली और नाम मिला, चिंकी और टीलू।

समय अपनी गति से गुज़रता जा रहा है। अब तो सभी प्राणी कामतानाथ जी के पूरे घर में उनके साथ विचरण करते, छत से लेकर, ग्राउंड फ्लोर तक, जिसका जहाँ मन करता है, वहाँ रहता है। झबला, झूरी, चिंकी और टीलू तो उनके साथ ही सोते। पक्षियों का परिवार भी बढ़ता जा रहा है। सब बड़े आनंद से उनके साथ अपने दिन गुज़ार रहे हैं। उनकी बेटी को पता चला, तो उसने गुस्सा करते हुए कहा कि आपने तो घर को चिड़ियाघर बना दिया है।

इतने बड़े मकान को किराए पर चढ़ाते तो कुछ किराया भी मिलता। और वह हँसकर उसकी बात का ज़वाब देते हुए कहते, ‘तुम्हारे कहने पर मैंने किराएदार तो नहीं, पर हाँ रिश्तेदार जरूर रख लिए हैं। फ़िर भी तुम्हें परेशानी हो रही है।’

इसी तरह अपने इन्हीं रिश्तेदारों के साथ उन्होंने पूरे दो-ढाई साल गुज़ार दिए। और एक दिन जब झबला ने उन्हें सैर पर चलने के लिए उठाया तो वह नहीं हिले। उसकी माँ झूरी ने उन्हें बहुत चाटा, पर तब भी उनके शरीर ने कोई हरकत नहीं की । दोनों ने भोंक-भोंक कर शोर मचाया, तो बाकी रिश्तेदार भी इकठ्ठे हो गए। चिंकी अपनी छत से सोहम की छत पर पहुँचकर उसे उसके घर से कुरता खीँचकर बुला लाई । 

सोहम छत से कूदता हुआ नीचे वाले कमरे में पहुँचा और कामतानाथ जी को उठाया और फिर ताला खोलकर डॉक्टर को बुला लाया। डॉक्टर के बताने पर कि कामतानाथ जी नहीं रहे, उसने उनके बेटी-दामाद को फ़ोन किया और वे दोनों यह ख़बर सुनते ही भारत पहुंच गए।

उसने घर में आकर देखा तो वह हैरान हो गई। कितने कबूतर, चिड़ियाँ, गौरैया के साथ-साथ बंदर और कुत्ते सभी उनके आसपास ग़मगीन होकर बैठे हुए है। गिलहरी उनके माथे को सहला रहीं है। चिड़िया अपनी चोंच से प्लास्टिक के चम्मच से उनके बंद मुँह में पानी डाल रहीं है। यह सब आपके पापा ने इन्हें सिखाया है। सोहम नम आँखों से बोला। चिंकी बंदरिया ने ही मुझे आपके पापा के बारे में बताया था। 

निधि की तो रुलाई फूट पड़ी। उसके पति अनिल ने उसे हौंसला दिया। श्मशान घाट पर कोई उड़कर पहुंचा और कोई चलकर पहुँचा। रिश्तेदार के नाम पर निधि के ससुराल वाले और कुछ कामतानाथ जी के पुराने परिचित ही पहुँच पाये। कामतानाथ जी और उनकी पत्नी सरला दोनों इकलौती संतान थे और दूर के किसी रिश्तेदार को निधि जानती नहीं थी।

चौथे के बाद ही सब चले गए और घर में रह गए निधि और उसका पति और वे सभी जीव-जंतु। ‘घर का क्या करना है?’ अनिल ने पूछा। करना क्या है? पापा के रिश्तेदार रहेंगे। अनिल उसकी बात सुनकर मुस्कुराने लगा, पर उसका मतलब नहीं समझा। निधि ने एक एन.जी.ओ. से बात की और अपने 150 गज़ के पूरे घर को जीव-जंतु संरक्षण केन्द्र में बदल दिया। अब यहाँ हर प्रजाति के पशु-पक्षियों को संरक्षण मिलेगा और उनकी देखभाल भी होगी और घायल जीव-जंतुओ का ईलाज भी किया जायेगा। निधि और अनिल ने कई लोगों को इस संरक्षण केंद्र से जोड़ा ताकि प्राणी जगत को सुरक्षा और रहने का स्थान मिल सके। और केंद्र का नाम रखा गया “कामतानाथ प्रसाद के रिश्तेदार“।

जो प्राप्त है-पर्याप्त है

जिसका मन मस्त है

उसके पास समस्त है!!

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏


विनम्र निवेदन

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