कैसे पाएं जीवन में सफलता
कैसे पाएं जीवन में सफलता
एक तिपाई अपने तीनों पैरों पर ही खड़ी हो सकती है। यदि उनमें से एक पैर न हो या कमज़ोर हो, लड़खड़ाने वाला हो तो वह तिपाई कभी खड़ी नहीं रह सकती।
इसी प्रकार एक संतुलित व सफल जीवन के लिए तीन पायों का होना अनिवार्य है। क्या आप जानना चाहते हैं कि वे तीन पाए कौन से हैं?
हाँ, तो सुनो!
वे तीन पाए हैं- पैसा, पुरुषार्थ और पुण्य (3p)।
यदि इनमें से एक भी पाया ढीला है, तो हम जीवन में कभी सफल नहीं हो सकते।
पैसा तो बहुत है, पर हम उसकी वृद्धि के लिए मेहनत अर्थात् पुरुषार्थ नहीं करते, तो वह एक दिन समाप्त हो ही जाएगा। पैसा भी है, हम मेहनत भी कर रहे हैं, लेकिन पैसा टिकता ही नहीं। तो इसका अर्थ है कि हमारे पास उसे भोगने के लिए पर्याप्त पुण्य नहीं है। वह जिस रास्ते से आता है, उसी रास्ते से चला जाता है। गौर से देखा जाए तो इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण है - पुण्य। पुण्य होगा तो गया हुआ पैसा भी हम अपने पुरुषार्थ से वापिस पा सकते हैं।
एक व्यक्ति पिछले 10-12 साल से के.बी.सी. यानि ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में जाने के लिए कठोर परिश्रम कर रहा था। पैसा भी लगाया, घण्टों नगर की लाइब्रेरी में बैठा रहता था किताबों में सिर गड़ाए। कोई समाचार पत्र नहीं छोड़ा। घरवाले भी उसके जुनून से तंग आ गए थे। पर उसका नंबर ही नहीं आता था।
एक दिन उसके पुण्य ने जोर मारा, तो उसे मुम्बई से कॉल आई। पैसा, पुरुषार्थ और पुण्य- तीनों का संयोग मिला और वह मुम्बई पहुँच गया। जब वह हॉल में अपनी सीट पर पहुँचा, तो उसने देखा कि उसके जैसे 10 प्रतिभागी वहाँ विराजमान थे।
अच्छा! तो इसका मतलब है कि इनका पुण्य भी मेरे समान ही प्रबल है। चलो! देखते हैं कि क्या होता है।
अब तक तो दसों प्रतिभागियों का पुण्य एक समान था।
तभी अमिताभ बच्चन का प्रवेश हुआ......अभिनन्दन....आभार.....। तालियों की गड़गड़ाहट से सारा हॉल गूँज उठा। अमिताभ बच्चन ने सबका स्वागत करते हुए उनका परिचय कराया और कहा कि अब हम अपने 10 प्रतिभागियों के साथ खेलेंगे - फास्टैस्ट फिंगर फर्स्ट!
उसने प्रश्न को अपनी-अपनी स्क्रीन पर देखने को कहा और शीघ्रता से एक प्रश्न को पढ़ा, उसके ऑब्शन पढ़े और एक तेज़ आवाज़ गूँजी - ‘आपका समय शुरू होता है अब!’
यहाँ तक भी दसों प्रतिभागियों को पुण्य एक समान था।
सबने अपनी स्क्रीन पर देखा और उनकी उंगलियाँ की-बोर्ड पर चलने लगीं। किसी ने बी.सी.ए.डी. लिखा, किसी ने ए.सी.बी.डी लिखा........ और इसी में समय समाप्त हो गया।
यहाँ तक भी दसों प्रतिभागियों को पुण्य एक समान था।
एक बार फिर अमिताभ बच्चन ने अपनी प्रभावशाली आवाज़ में कहा - अब आपका समय होता है समाप्त। आइए, देखते हैं कि किस-किस ने सही उत्तर दिया है।
बस! चंद सैंकिड का ही खेल था, जिसमें उनकी किस्मत का फैसला होना था।
अमिताभ बच्चन ने उत्तर का सही क्रम बताया। स्क्रीन पर सही उत्तर देने वालों के नाम और उनके द्वारा लिया गया समय दिखाई देने लगा।
‘केवल दो लोगों ने सही उत्तर दिया है और इनमें से सबसे कम समय लिया है श्रीमान्........... ने। इन्होंने 26 सैकिण्ड में उत्तर दिया है और दूसरे प्रतिभागी ने 27 सैकिण्ड में।’
हैं! यह क्या? सही उत्तर देने के बाद भी वह एक सैकिण्ड से पीछे रह गया और उसका अमिताभ बच्चन से हाथ मिलाने का और हॉट सीट पर बैठने का सपना अब सपना बन कर ही रह गया।
फिर से वही संघर्ष, वही परिश्रम, वही निराशा।
क्या समझे? क्या उसके पुरुषार्थ में कोई कमी थी? नहीं न! वरना वह यहाँ तक कैसे आता?
क्या उसने पहले प्रतिभागी के समान ही समय और पैसा नहीं लगाया था? सब कुछ लगाया था, लेकिन भाग्य उसके साथ नहीं था।
भाग्य बनता है पुण्य से और पुण्य मिलता है अच्छे कर्मों से, जो मन, वचन व काया से किए जाते हैं। केवल दान-धर्म करना ही पुण्य नहीं है, उसमें मन व वचन की एकता भी होनी चाहिए।
मन, वचन व काया के सद्भाव से किया गया अच्छा कर्म पुण्य को बढ़ाता है और हमें जीवन में सफलता दिलाता है। हम पढ़ाई कर रहे हैं और मन में अपने साथी से द्वेष कर रहे हैं कि वह मुझसे आगे न निकल जाए। हम व्यापार कर रहे हैं और मन में सोच रहे हैं कि साथ वाली दुकान के सारे ग्राहक मेरी ही दुकान पर आ जाएं, यह विचार पुण्य को क्षीण करता है।
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की भावना से किया गया कर्म हमारे पुण्य में वृद्धि करता है।
अतः शुद्ध व शुभ भावना से कर्म करो, आपको अवश्य ही उसका अच्छा फल मिलेगा। आप जीवन में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते चले जाएंगे। आपको यश, धन के साथ-साथ मन की शांति, सुख व संतोष भी मिलेगा।
।।संतों के प्रवचन से उद्धृत उद्बोधन।।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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