परम्परा
परम्परा
पापा... आप घर के बाहर पौधा क्यों लगा रहे हैं? पौधा तो बगीचे में लगाते हैं न!’- अपने पिता को पौधा लगाते देख आठ वर्षीय मनु ने आश्चर्य से पूछा।
महेश बोले, ’हां बेटा... पौधा बगीचे में ही लगाते हैं लेकिन वह देखो..।’ कहते हुए उन्होंने एक पेड़ की तरफ इशारा किया और बोले, ’वह छायादार पेड़ देख रहे हो... मैं जब तुम्हारी उम्र का था, तब तुम्हारे दादाजी ने उसे लगाया था। मैं और तुम्हारे चाचा जब खेलते-खेलते थक जाते थे, तब उसकी ही छाया में विश्राम करते थे।
सड़क पर चलते लोगों को जब तेज गर्मी सताने लगती है तब वो उसके नीचे आकर बैठ जाते हैं... उसकी पत्तियां उन्हें ठंडक और ऑक्सीजन देती हैं। देखो तो कैसे पंछी उस पर बैठकर गान करते हुए झूला झूल रहे हैं।’
’हां पापा...।’ मनु प्रसन्न होकर बोला।
’इसीलिए बेटा.. मैं यहां पौधा लगा रहा हूं ताकि यह भी तुम्हारे साथ बड़ा हो जाएगा और तुम्हारे साथ-साथ हर आने-जाने वाले को अपनी छाया और ठंडक प्रदान करेगा..।’ कहते हुए महेश ने खुरपी से मिट्टी हटाकर थोड़ी जगह बनाई और उसमें पौधा लगा दिया।
अगले दिन जब महेश पौधे में पानी देने के लिए बाहर निकले तो वहां मनु को हाथ से जमीन खोदते हुए देखा। उन्होंने आश्चर्य से पूछा, ’अरे मनु बेटा.. तुम यहां क्या कर रहे हो?’
’पापा.. मैं भी एक पौधा लगा रहा हूं ताकि कल मेरा और बड़े भैया का बेटा भी इसकी छाया में...।’ कहते हुए वह मुस्कुराया और नन्हे पौधे को धीरे-धीरे पानी देने लगा। बेटे को वृक्ष लगाने की परंपरा निभाते देख महेश बहुत खुश हुए और उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोले, ’शाबाश बेटा!’
शिक्षा
हर माता पिता का दायित्व बनता है कि वे अपने बच्चों को पेड़ पौधे लगाने के लिए प्रेरित करते रहे, ताकि भविष्य में तापमान बढ़ोतरी का सामना न करना पड़े और उनकी आने वाली पीढ़ी सुरक्षित रहे।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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