संसार-वृक्ष

 संसार-वृक्ष

एक बार विदुर जी संसार भ्रमण करके धृतराष्ट्र के पास पहुँचे तो धृतराष्ट्र ने कहा, “विदुर जी! सारा संसार घूमकर आये हो आप, कहिये कहाँ-कहाँ पर क्या-क्या देखा आपने?“

विदुर जी बोले, “राजन्! कितने आश्चर्य की बात देखी है मैंने! सारा संसार लोभ शृंखलाओं में फँस गया है। काम, क्रोध, लोभ, भय के कारण उसे कुछ भी दिखाई नहीं देता, पागल हो गया है। आत्मा को वह जानता ही नहीं।“

तब उन्होंने एक कथा सुनाई। एक बहुत भयानक वन था। उसमें भूला-भटका हुआ एक व्यक्ति जा पहुँचा। मार्ग उसे मिला नहीं, परन्तु उसने देखा कि वन में शेर, चीते, रीछ, हाथी और न जाने कितने ही पशु दहाड़ रहे हैं। भय से उसके हाथ-पाँव काँपने लगे। बिना पीछे देखे वह भागने लगा।

भागता-भागता एक स्थान पर पहुँच गया। वहाँ देखा कि पाँच विषधर साँप फन फैलाये फुङ्कार रहे हैं। उनके पास ही एक वृद्ध स्त्री खड़ी है। महाभयंकर साँप जब इसकी और लपका तो वह फिर भागा और अन्त में हाँफता हुआ एक गड्ढे में जा गिरा जो घास और पौधों से ढका पड़ा था। 

सौभाग्य से गिरते समय एक बड़े वृक्ष की शाखा उसके हाथ में आ गई। उसको पकड़कर वह लटकने लगा। तभी उसने नीचे देखा कि एक कुआँ है और उसमें एक बहुत बड़ा साँप―एक अजगर मुख खोले बैठा है। उसे देखकर वह काँप उठा। शाखा को दृढ़ता से पकड़ लिया कि वह गिरकर अजगर के मुख में न जा पड़े। परन्तु ऊपर देखा तो उससे भी भयंकर दृश्य था। छः मुख वाला एक हाथी वृक्ष को झंझोड़ रहा था और वह वृक्ष किसी भी समय ज़मीन पर गिर सकता था। 

जिस शाखा को उसने पकड़ रखा था, उसे सफेद और काले रंग के दो चूहे काट रहे थे। वृक्ष के गिरने से पहले तो यह शाखा ही कट कर गिर जाएगी। भय से उसका रंग पीला पड़ गया, परन्तु तभी शहद की एक बूँद उसके होंठों पर आ गिरी।

उसने ऊपर देखा। वृक्ष के ऊपर वाले भाग में मधु-मक्खियों का एक छत्ता लगा था, उसी से शनैः-शनैः शहद की बूँदें गिरती थीं। इतने कष्ट में होते हुए भी वह इन शहद की बूँदों का स्वाद लेने लगा। वह इस बात को भूल गया कि नीचे अजगर है। इस बात को भूल गया कि वृक्ष को एक छः मुख वाला हाथी झंझोड़ रहा है। इस बात को भी भूल गया कि जिस शाखा से वह लटका है, उसे सफेद और काले चूहे काट रहे हैं और इस बात को भी कि चारों ओर भयानक वन है जिसमें भयंकर पशु चिंघाड़ रहे हैं।

धृतराष्ट्र ने कथा को सुना तो कहा, “विदुर जी! यह कौन से वन की बात आप कहते हैं? कौन है वह अभागा व्यक्ति जो इस भयानक वन में पहुँचकर संकट में फँस गया?“

विदुर जी ने कहा―“राजन्! यह संसार ही वह वन है। हर मनुष्य वह अभागा व्यक्ति है। संसार में पहुँचते ही वह देखता है कि इस वन में रोग, कष्ट और चिन्ता रूपी पशु गरज रहे हैं। यहाँ काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार के पाँच विषधर साँप फन फैलाये फुङ्कार रहे हैं। 

यहीं वह बूढ़ी स्त्री रहती है जिसे वृद्धावस्था कहते हैं और जो रूप तथा यौवन को समाप्त कर देती है। इनसे डरकर वह भागा। वह शाखा, जिसे जीने की इच्छा कहते हैं, उसके हाथ में आ गई। इस शाखा से लटके-लटके उसने देखा कि नीचे मृत्यु का महासर्प मुँह खोले बैठा है। 

वह सर्प, जिससे आज तक कोई भी नहीं बचा, न राम, न रावण, न कोई राजा, न महाराजा, न कोई धनवान, न कोई निर्धन; कोई भी काल रूपी सर्प से आज तक बचा नहीं और छः मुख वाला हाथी जो इस वृक्ष को झंझोड़ रहा था वह वर्ष (समय) है― छः ऋतुओं वाला। छः ऋतुएँ ही उसके मुख हैं, जिससे वह हर क्षण समय को खाता रहता है। लगातार वह समय रूपी हाथी इस संसार रूपी वृक्ष को झंझोड़ता रहता है; और इसके साथ ही काले और श्वेत रंग के दो चूहे इस शाखा को तीव्रता से काट रहे हैं; ये रात और दिन हैं। जो आयु को प्रतिदिन छोटा कर रहे हैं, यही दो चूहे हैं।

फिर भी मनुष्य की लीला तो देखिए! वह शहद की एक बूँद के रस का लालच नहीं छोड़ पाता।

तभी वहाँ से एक देवों का एक विमान गुज़रता है। उसमें बैठी देवी को उस अभागे मनुष्य पर दया आ जाती है। वह देव से कहती है कि देखो! यह मनुष्य कितनी विपत्ति में पड़ा है। चलो! हम इसे अपने विमान में बैठा कर स्वर्ग लोक ले चलते हैं। देव उसके पास अपना विमान लेकर जाता है और उसे अपने विमान में बैठने को कहता है ताकि इन विपत्तियों से उसे छुटकारा दिला सके।

लेकिन मनुष्य दुविधा में पड़ जाता है। एक ओर विमान व दूसरी ओर शहद की एक बूँद का लालच। देव उसे कहता है कि जल्दी मेरा हाथ पकड़ लो, वरना यह वृक्ष धराशायी हो जाएगा, यह शाखा टूट गई तो तुम काल के गाल में समा जाओगे। वह मनुष्य कभी देव के विमान को देखता है और कभी शहद की टपकती हुई एक-एक बूँद को।

बस! एक बूँद और! एक बूँद और!

बूँद टपकती रही और वह धीरे-धीरे काल के गाल में समाता रहा। और अन्त में अपनी जान से हाथ धो बैठा।

मित्रों! यह कथा उस मनुष्य की नहीं, अपितु हम सब की है। काश! हम भी समय रहते उस देव की बात सुन लें और धर्म के विमान में बैठ जाएं, तो इस संसार-सागर के दुःखों से मुक्ति पा सकते हैं।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏


विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

Comments

  1. Me very happy to learn the story
    Wonderful and lots to learn

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