मीठी वाणी बहुत बड़ा वरदान है

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वाणी बने वीणा (9)

मीठी वाणी बहुत बड़ा वरदान है

कहते हैं कि वाणी में इतनी शक्ति होती है कि कड़वा बोलने वाले का तो शहद भी नहीं बिकता और मीठा बोलने वाले की मिर्ची भी बिक जाती है। जानते हो कि ऐसा क्यों?

हर कथन के साथ कोई न कोई घटना जुड़ी होती है। एक बार कुछ शिक्षक पांडिचेरी के अरविन्द आश्रम गए। वहाँ वे श्री माताजी से मिले और उनसे पूछा कि हमें सदैव प्रसन्न रहने के लिए क्या करना चाहिए? उन्होंने कहा कि अपनी वाणी से सदैव अमृत बिखेरते रहो, सभी से प्रेम करो और सभी से प्रेम पाओ। इसी से प्रसन्नता मिलेगी।

उन्होंने एक कथा सुनाई कि फारस देश में एक स्त्री शहद बेचने का काम करती थी। वह स्वयं जितनी सुंदर थी, उसकी वाणी भी उतनी ही मीठी थी शहद के समान। उसकी दुकान पर ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी। 2 घंटे में ही उसका सारा शहद बिक जाता था। आमदनी भी अच्छी हो जाती थी।

एक ओछी प्रकृति वाला व्यक्ति यह देख कर मन ही मन उससे जलता था। उसने भी उस के पास ही अपनी शहद की दुकान लगा ली। उसकी दुकान पर एक ग्राहक आया और सहज भाव से पूछने लगा कि क्यों भाई, शहद नकली तो नहीं है न! उस आदमी ने भड़क कर कहा कि जो स्वयं नकली होते हैं, वही दूसरे के सामान को नकली बताते हैं। बस! फिर क्या था? वह ग्राहक नाराज़ होकर शहद लिए बिना ही चला गया।

अब वही ग्राहक उस महिला की दुकान पर गया और उससे भी यही प्रश्न किया। महिला ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि जब वह खुद असली है तो नकली शहद क्यों बेचेगी? ग्राहक के चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गई और वह शहद लेकर चला गया।

तो माताजी ने बताया कि विनम्र स्वभाव और मीठी वाणी का हर सफलता में असीम योगदान होता है।

दास प्रथा के दिनों में एक मालिक के पास अनेक गुलाम हुआ करते थे। उन्हीं में से एक था लुक़मान। लुक़मान था तो सिर्फ एक गुलाम लेकिन वह बहुत चतुर और बुद्धिमान था। उसकी ख्याति दूर दराज़ के इलाकों में फैलने लगी थी। 

एक दिन इस बात की खबर उसके मालिक को लगी, मालिक ने लुक़मान को बुलाया और कहा - ‘सुनते हैं कि तुम बहुत बुद्धिमान हो। मैं तुम्हारी बुद्धिमानी की परीक्षा लेना चाहता हूँ। अगर तुम इम्तिहान में पास हो गए तो तुम्हें गुलामी से छुट्टी दे दी जाएगी। अच्छा जाओ! एक मरे हुए बकरे को काटो और उसका जो हिस्सा बढ़िया हो, उसे ले आओ।’

लुक़मान ने आदेश का पालन किया और मरे हुए बकरे की जीभ लाकर मालिक के सामने रख दी। कारण पूछने पर कि जीभ ही क्यों लाया ! लुक़मान ने कहा - ‘अगर शरीर में जीभ अच्छी हो तो जीवन में सब कुछ अच्छा-ही-अच्छा होता है।’ मालिक ने आदेश देते हुए कहा - “अच्छा! इसे उठा ले जाओ और अब बकरे का जो हिस्सा बुरा हो उसे ले आओ।”

लुक़मान बाहर गया, लेकिन थोड़ी ही देर में उसने उसी जीभ को लाकर मालिक के सामने फिर रख दिया। फिर से कारण पूछने पर लुक़मान ने कहा - “अगर शरीर में जीभ अच्छी नहीं तो जीवन में सब बुरा-ही-बुरा है।”

‘वह कैसे?’

उसने कहा - “मालिक! वाणी तो सभी के पास जन्मजात होती है, परन्तु बोलना किसी-किसी को ही आता है कि क्या बोलें? कैसे शब्द बोलें, कब बोलें? इस बोलने की कला को बहुत ही कम लोग जानते हैं। एक बात से प्रेम झरता है और दूसरी बात से झगड़ा होता है।”

कड़वी बातों ने संसार में न जाने कितने झगड़े पैदा किये हैं। इस जीभ ने ही दुनिया में बड़े-बड़े कहर ढाये हैं। जीभ तीन इंच का वो हथियार है जिससे चाहे तो कोई छः फिट के आदमी को भी मार सकता है और चाहे तो कोई मरते हुए इंसान में भी प्राण फूंक सकता है। संसार के सभी प्राणियों में वाणी का वरदान मात्र मानव को ही मिला है। उसके सदुपयोग से स्वर्ग पृथ्वी पर उतर सकता है और दुरुपयोग से स्वर्ग भी नरक में परिणत हो सकता है। 

भारत के विनाशकारी महाभारत का युद्ध वाणी के गलत प्रयोग का ही परिणाम था।

मालिक, लुक़मान की बुद्धिमानी और चतुराई भरी बातों को सुनकर बहुत खुश हुए। आज उनके गुलाम ने उन्हें एक बहुत बड़ी सीख दी थी और उन्होंने उसे आजाद कर दिया।

मित्रों, मधुर वाणी एक वरदान है, इसका सही उपयोग करो।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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