संन्यासी की जड़ी - बूटी

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संन्यासी की जड़ी - बूटी

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बहुत समय पहले की बात है। एक वृद्ध संन्यासी हिमालय की पहाड़ियों में कहीं रहता था। वह बहुत ज्ञानी था और उसकी बुद्धिमत्ता की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। एक दिन एक औरत उसके पास पहुंची और अपना दुखड़ा रोने लगी। “बाबा। मेरा पति मुझसे बहुत प्रेम करता था लेकिन वह जबसे युद्ध से लौटा है ठीक से बात तक नहीं करता।”

“युद्ध लोगों के मन से प्रेम समाप्त कर देता है”, संन्यासी बोला।

“लोग कहते हैं कि आपकी दी हुई जड़ी-बूटी इंसान में फिर से प्रेम उत्पन्न कर सकती है। कृपया आप मुझे वह जड़ी-बूटी दे दें”, महिला ने विनती की।

संन्यासी ने कुछ सोचा और फिर बोला, “देवी मैं तुम्हें वह जड़ी-बूटी ज़रूर दे देता लेकिन उसे बनाने के लिए एक ऐसी चीज चाहिए जो मेरे पास नहीं है।”

“आपको क्या चाहिए? मुझे बताइए। मैं लेकर आउंगी”, महिला बोली।

“मुझे बाघ की मूंछ का एक बाल चाहिए।” संन्यासी बोला।

अगले ही दिन महिला बाघ की तलाश में जंगल में निकल पड़ी। बहुत खोजने के बाद उसे नदी के किनारे एक बाघ दिखा। बाघ उसे देखते ही दहाड़ा। महिला सहम गई और तेज़ी से वापस चली गई।

अगले कुछ दिनों तक यही हुआ। महिला हिम्मत कर के उस बाघ के पास पहुँचती और डर कर वापस चली जाती। महीना बीतते-बीतते बाघ को महिला की मौजूदगी की आदत पड़ गयी और अब वह उसे देख कर सामान्य ही रहता। अब तो महिला बाघ के लिए मांस भी लाने लगी और बाघ बड़े चाव से उसे खाता। उनकी दोस्ती बढ़ने लगी और अब महिला बाघ को थपथपाने भी लगी। देखते-देखते एक दिन वह भी आ गया जब उसने हिम्मत दिखाते हुए बाघ की मूंछ का एक बाल भी निकाल लिया।

फिर क्या था। वह बिना देरी किये संन्यासी के पास पहुंची और बोली, “मैं बाल ले आई बाबा।”

“बहुत अच्छे”, और ऐसा कहते हुए संन्यासी ने बाल को जलती हुई आग में फ़ेंक दिया।

“अरे! ये क्या बाबा? आप नहीं जानते, इस बाल को लाने के लिए मैंने कितने प्रयत्न किए और आपने इसे जला दिया! अब मेरी जड़ी-बूटी कैसे बनेगी?” महिला घबराते हुए बोली।

“अब तुम्हें किसी जड़ी-बूटी की ज़रुरत नहीं है”, संन्यासी बोला। “जरा सोचो कि तुमने बाघ को किस तरह अपने वश में किया? जब एक हिंसक पशु को धैर्य और प्रेम से जीता जा सकता है तो एक इंसान को क्यों नहीं? जाओ, जिस तरह तुमने बाघ को अपना मित्र बना लिया उसी तरह अपने पति के अन्दर प्रेम भाव जागृत करो।”

महिला संन्यासी की बात समझ गई। अब उसे प्रेम की जड़ी-बूटी मिल चुकी थी।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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