किसान की घड़ी

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किसान की घड़ी

Image by Bessi from Pixabay

एक बार एक किसान की घड़ी कहीं खो गई। वैसे तो घड़ी कीमती नहीं थी पर किसान उससे भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था और किसी भी तरह उसे वापस पाना चाहता था। उसने खुद भी घड़ी खोजने का बहुत प्रयास किया। कभी कमरे में खोजता तो कभी बाड़े में, तो कभी अनाज के ढेर में, पर तामाम कोशिशों के बाद भी घड़ी नहीं मिली। उसने निश्चय किया कि वह इस काम में बच्चों की मदद लेगा और उसने आवाज लगाई - “सुनो बच्चों! तुममें से जो भी मेरी खोई हुई घड़ी खोज देगा, उसे मैं 100 रुपये इनाम में दूंगा।”

फिर क्या था? सभी बच्चे ज़ोर-शोर से इस काम में लग गए। वे हर जगह की ख़ाक छानने लगे। ऊपर-नीचे, बाहर आँगन में, हर जगह, पर घंटो बीत जाने पर भी घड़ी नहीं मिली। अब लगभग सभी बच्चे हार मान चुके थे और किसान को भी यही लगा कि घड़ी नहीं मिलेगी। तभी एक लड़का उसके पास आया और बोला - “काका! मुझे एक मौका और दीजिए। पर इस बार मैं यह काम अकेले ही करना चाहूँगा।” किसान का क्या जा रहा था? उसे तो घड़ी चाहिए थी। उसने तुरंत ‘हाँ’ कर दी।

लड़का एक-एक कर के घर के कमरों में जाने लगा और जब वह किसान के शयन-कक्ष से निकला तो घड़ी उसके हाथ में थी। किसान घड़ी देख प्रसन्न हो गया और उसने अचरज से पूछा - “बेटा! कहाँ थी ये घड़ी और जहाँ हम सभी असफल हो गए, तुमने इसे कैसे ढूंढ निकाला?” लड़का बोला - “काका! मैंने कुछ नहीं किया। बस मैं कमरे में गया और चुप-चाप बैठ गया। घड़ी की टिक-टिक की आवाज़ पर ध्यान केन्द्रित करने लगा। कमरे में शांति होने के कारण मुझे घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे गई, जिससे मैंने उसकी दिशा का अंदाजा लगा लिया और अलमारी के पीछे गिरी ये घड़ी खोज निकाली।”

शिक्षा: 

मित्रों! जिस तरह कमरे की शांति घड़ी ढूँढने में मददगार साबित हुई, उसी प्रकार मन की शांति हमारे जीवन की ज़रूरी समस्याओं व आवश्यकताओं को समझने में मददगार होती है। हर दिन हमें अपने लिए थोड़ा वक़्त निकालना चाहिए, जब हम बिल्कुल अकेले हों। जिसमें हम शांति से बैठ कर खुद से बात कर सकें और अपने भीतर की आवाज़ को सुन सकें। तभी हम अपने जीवन को और अच्छे ढंग से जी पाएंगे।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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विनम्र निवेदन

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