प्रेम के बोल

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प्रेम के बोल

Image by Rudy and Peter Skitterians from Pixabay

एक गाँव में एक मज़दूर रहा करता था जिसका नाम हरिराम था। उसके परिवार में कोई नहीं था। दिन भर अकेला मेहनत में लगा रहता था। दिल का बहुत ही दयालु और कर्मों का भी बहुत अच्छा था। मज़दूर था इसलिए उसे भोजन भी मज़दूरी के बाद ही मिलता था। आगे-पीछे कोई नहीं था इसलिए वह इस आजीविका से संतुष्ट था।

एक बार उसे एक छोटा-सा बछड़ा मिल गया। उसने ख़ुशी से उसे पाल लिया। उसने सोचा कि आज तक वह अकेला था, अब वह इस बछड़े को अपने बेटे के समान पालेगा। हरिराम का दिन उसके बछड़े से ही शुरू होता और उसी पर ख़त्म होता। वह रात-दिन उसकी सेवा करता और उसी से अपने मन की बात करता। कुछ समय बाद बछड़ा बैल बन गया। उसकी जो सेवा हरिराम ने की थी, उससे वह बहुत ही सुंदर और बलशाली बन गया था।

गाँव के सभी लोग हरिराम के बैल की ही बातें किया करते थे। किसानों के गांव में बैलों की भरमार थी पर हरिराम का बैल उन सबसे अलग था। दूर-दूर से लोग उसे देखने आते थे। हर कोई हरिराम के बैल के बारे में बातें करता रहता था।

हरिराम भी अपने बैल से एक बेटे की तरह ही प्यार करता था। भले खुद भूखा सो जाये लेकिन उसे हमेशा भर पेट खिलाता था। एक दिन हरिराम के स्वप्न में शिव का नंदी बैल आया। उसने उससे कहा कि हरिराम तुम एक निस्वार्थ सेवक हो। तुमने खुद की तकलीफ को छोड़ कर अपने बैल की सेवा की है। इसलिये मैं तुम्हारे बैल को बोलने की शक्ति दे रहा हूँ। इतना सुनते ही हरिराम जाग गया और अपने बैल के पास गया। उसने बैल को सहलाया और मुस्कुराया कि भला एक बैल बोल कैसे सकता है? तभी अचानक आवाज़ आई - बाबा! आपने मेरा ध्यान एक पुत्र की तरह रखा है। मैं आपका आभारी हूँ और आपके लिए कुछ करना चाहता हूँ। यह सुनकर हरिराम घबरा गया। उसने खुद को संभाला और तुरंत ही बैल को गले लगाया। उसी समय से वह अपने बैल को नंदी कहकर पुकारने लगा। दिन भर काम करके आता और नंदी से बाते करता।

ग़रीबी की मार बहुत थी। नंदी को तो हरिराम भर पेट देता था लेकिन खुद भूखा सो जाता था। यह बात नंदी को अच्छी नहीं लगी। उसने हरिराम से कहा कि वह नगर के सेठ के पास जाये और शर्त रखे कि उसका बैल नंदी सौ गाड़ियां खींच सकता है और शर्त के रूप में सेठ से हज़ार मुहरें ले लेना।

हरिराम ने कहा - नंदी! तू पागल हो गया है। भला कोई बैल इतना भार वहन कर भी सकता है। मैं अपने जीवन से खुश हूँ। मुझे यह नहीं करना। लेकिन नंदी के बार-बार आग्रह करने पर हरिराम को उसकी बात माननी पड़ी।

एक दिन डरते-डरते हरिराम सेठ दीनदयाल के घर पहुँचा।

दीनदयाल ने उससे आने का कारण पूछा तब हरिराम ने शर्त के बारे में कहा। सेठ ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा। बोला - हरिराम! बैल के साथ रहकर क्या तुम्हारी मति भी बैल जैसी हो गई है। अगर शर्त हार गये तो हज़ार मुहर के लिये तुम्हें अपनी झोपड़ी तक बेचनी पड़ेगी।

यह सुनकर हरिराम और अधिक डर गया लेकिन मुँह से निकली बात पर मुकर भी नहीं सकता था।

शर्त का दिन तय किया गया और सेठ दीनदयाल ने पूरे गाँव में ढोल पिटवाकर इस प्रतियोगिता के बारे में गाँव वालो को ख़बर दी और सभी को यह अद्भुत नज़ारा देखने के लिए बुलाया। सभी ख़बर सुनने के बाद हरिराम का मजाक उड़ाने लगे और कहने लगे कि यह शर्त तो हरिराम ही हारेगा। यह सब सुन-सुनकर हरिराम को और अधिक डर लगने लगा और उसे नंदी से घृणा होने लगी।

वह उसे कोसने लगा, बार-बार उसे दोष देता और कहता कि कहाँ मैंने इस बैल को पाल लिया। मेरी अच्छी भली कट रही थी। इसके कारण सर की छत से भी जाऊँगा और लोगों की थू-थू होगी वह अलग। अब हरिराम को नंदी बिलकुल भी रास नहीं आ रहा था।

वह दिन आ गया जिस दिन प्रतियोगिता होनी थी। सौ माल से भरी गाड़ियों के आगे नंदी को जोता गया और गाड़ी पर खुद हरिराम बैठा। सभी गाँव वाले यह नज़ारा देख हंस रहे थे और हरिराम को बुरा भला कह रहे थे।

हरिराम ने नंदी से कहा - देख! तेरे कारण मुझे कितना सुनना पड़ रहा है। मैंने तुझे बेटे जैसा पाला था और तूने मुझे सड़क पर लाने का काम किया। हरिराम के ऐसे घृणित शब्दों के कारण नंदी को गुस्सा आ गया और उसने ठान ली कि वह एक कदम भी आगे नहीं बढ़ायेगा और इस तरह हरिराम शर्त हार गया। सभी ने उसका मज़ाक उड़ाया और उसे अपनी झोपड़ी सेठ को देनी पड़ी।

अब हरिराम नंदी के साथ मंदिर के बाहर पड़ा हुआ था और नंदी के सामने रो रोकर उसे कोस रहा था। उसकी बातें सुनकर नंदी से सहा नहीं गया और उसने कहा - बाबा हरिराम! यह सब तुम्हारे कारण हुआ। यह सुन हरिराम चौंक गया। उसने गुस्से में पूछा कि मैंने क्या किया? तुमने भांग खा रखी है क्या? तब नंदी ने कहा कि तुम्हारे प्रेम के बोल के कारण ही भगवान ने मुझे बोलने की शक्ति दी और मैंने तुम्हारे लिये यह सब करने की सोची। लेकिन तुम उल्टा मुझे ही कोसने लगे और मुझे बुरा भला कहने लगे। तब मैंने ठानी कि मैं तुम्हारे लिये कुछ नहीं करूँगा लेकिन अब मैं तुमसे फिर से कहता हूँ कि मैं सौ गाड़ियाँ खींच सकता हूँ। तुम जाकर फिर से शर्त लगाओ और इस बार अपनी झोपड़ी और एक हजार मुहरों की शर्त लगाना।

हरिराम वही करता है और फिर से शर्त के अनुसार सौ गाड़ियां तैयार कर उस पर नंदी को जोता जाता है। फिर से उस पर हरिराम बैठता है और प्यार से सहलाकर उसे गाड़ियां खींचने के लिए कहता है और इस बार नंदी यह कर दिखाता है जिसे देख सब स्तब्ध रह जाते हैं और हरिराम शर्त जीत जाता है। सेठ दीनदयाल उसे उसकी झोपड़ी और हज़ार मुहरें दे देता है।

शिक्षा - जीवन में प्रेम से ही किसी को जीता जा सकता है। कहते हैं कि प्रेम के सामने ईश्वर भी झुक जाता है इसलिये सभी को प्रेम के बोल ही बोलने चाहिये!!

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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