फूटा घड़ा

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फूटा घड़ा

Image by Veronika Andrews from Pixabay

बहुत समय पहले की बात है। किसी गांव में एक किसान रहता था।              

वह रोज़ सुबह दूर झरनों से साफ पानी लेने जाया करता था। इस काम के लिए वह अपने साथ दो घड़े ले जाता था, जिन्हें वह डंडे में बांधकर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था। उनमें से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था और दूसरा एकदम सही था। इस वजह से रोज़ घर पहुंचते-पहुंचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था।

सही घड़े को इस बात का घमंड था कि वह पूरा का पूरा पानी घर पहुंचाता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है। दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा रहता था कि वह आधा पानी ही घर तक पहुंचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार जाती है। फूटा घड़ा ये सब सोचकर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया। उसने किसान से कहा - मैं खुद पर शर्मिंदा हूँ और आपसे माफी मांगना चाहता हूँ।

किसान ने पूछा - क्यों? तुम किस बात से शर्मिंदा हो?

फूटा घड़ा बोला - शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुंचाना चाहिए था, बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूँ। मेरे अंदर ये बहुत बड़ी कमी है और इस वजह से आपकी मेहनत बर्बाद होती रही है।

किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुख हुआ और वह बोला - कोई बात नहीं। मैं चाहता हूँ कि आज लौटते वक़्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो। घड़े ने वैसा ही किया। वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया। ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुंचते-पहुंचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था। वह मायूस होकर किसान से माफी मांगने लगा।

किसान बोला - शायद तुमने ध्यान नहीं दिया। पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे। वे बस तुम्हारी तरफ ही थे। सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर की कमी को जानता था और मैंने उसका फायदा उठाया। मैंने तुम्हारी तरफ वाले रास्ते पर रंग-बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे। तुम रोज़ थोड़ा-थोड़ा कर उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत बना दिया। आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हूँ और अपने घर को सुन्दर बना पाता हूँ। तुम्हीं सोचो - अगर तुम जैसे हो, वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता?

दोस्तों! हम सभी के अन्दर कोई न कोई कमी है। पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं। उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वैसा ही स्वीकारना चाहिए जैसा वह है। उसकी अच्छाई पर ध्यान देना चाहिए। जब हम ऐसा करेंगे तब ‘फूटा घड़ा’ ‘अच्छे घड़े’ से भी अधिक कीमती हो जाएगा।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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