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Showing posts from February, 2022

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 86)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 86 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) आदमियों की दोस्ती इलाहाबाद से लौटने पर शास्त्री जी का बर्मा जाने का कार्यक्रम बना। वहाँ के प्रधानमंत्री श्री ने विन का निमंत्रण था। श्री ने विन के नेतृत्व ने बर्मा को एक नया रूप दिया है, जो हर तरह से सराहनीय है। शास्त्री जी के संग हम भी बर्मा गई। हमारी और श्रीमती ने विन की इतनी दोस्ती हो गई कि हम बता नहीं सकती। वे बड़ी मिलनसार व साफ़ हृदय की महिला हैं।  एक दिन जब जनरल ने विन, श्रीमती ने विन, हम और शास्त्री जी बैठे चाय पी रहे थे, तो हमने कहा - ‘एक हम लोग हैं कि मिलते ही दोस्ती हो गई और एक आप लोग हैं कि इतनी बातचीत के बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सके हैं।’ शास्त्री जी मुस्कुरा कर बोले - ‘सो तो ठीक है, लेकिन यह क्यों भूलती हैं कि जितनी जल्दी आप लोगों के बीच दोस्ती कायम होती है, उतनी ही जल्दी टूटती भी तो है। इसके अलावा आप सब की दोस्ती ख़त्म होने पर जब झगड़ा शुरू होता है, तो ज़िदगी भर चलता रहता है, ल...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 85)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 85 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) शास्त्री जी की दो इच्छाएं रानी साहिबा के प्रस्ताव पर हमें बड़ी प्रसन्नता हुई। पर तब क्या मालूम था कि शास्त्री जी का स्वप्न उनकी मृत्यु के बाद साकार हो सकेगा, क्योंकि राजनीति से अवकाश होने के बाद शास्त्री जी दो काम करना चाहते थे। एक ‘आदर्श आश्रम’ की स्थापना करना और दूसरा पुस्तकें लिखना। वे दोबारा राजनीति में नहीं आना चाहते थे। यद्यपि आश्रम तो स्थापित नहीं हो पाया, तथापि ‘शास्त्री-सेवा-निकेतन’ की स्थापना हो गई है और राजा साहब के महल में ही हुई है। राजा साहब ने ‘शास्त्री-सेवा-निकेतन’ के लिए महल ही नहीं दिया है, वरन् एक तरह से अपना सब कुछ दे रखा है। सेवा-निकेतन के लिए वे तन-मन-धन से जितना कर रहे हैं, उसका बख़ान नहीं किया जा सकता। हमें यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि राजा साहब के अभाव में शायद सेवा-निकेतन जिस रूप में इतनी जल्दी खड़ा हो सका है, उतनी जल्दी खड़ा हो पाता। राजा साहब उन इने-गिने व्यक्तियों म...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 84)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 84 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) रानी साहिबा का प्रस्ताव बहुत पहले जब शास्त्री जी उत्तरप्रदेश में पुलिस मंत्री थे, तो एक बार हम बाल-बच्चों सहित नैनीताल गई थी। वहाँ एक ज्योतिषी जी ने हमें बताया था कि हमें अपने लड़कों के अतिरिक्त एक ऐसा लड़का और मिलेगा, जो अपने लड़कों से भी अधिक हमारा ध्यान रखेगा और हमारे लिए सब कुछ करने को सदा तैयार रहेगा। उस समय बात आई-गई हो गई। पर ताशकंद जाने से पहले जब शास्त्री जी मांडा के राजा साहब के आग्रह पर मांडा में भाषण देने गए, तो जैसा राजा साहब ने शास्त्री जी का स्वागत किया, वह तो अनूठा था ही; उससे भी अनूठा था शास्त्री जी का तिलक करना। राजा साहब ने अपने अंगूठे को काट कर शास्त्री जी को अपने ख़ून से तिलक लगाया था। उसी समय न जाने क्यों, हमें राजा साहब के प्रति हृदय में पुत्रवत् भाव उमड़ पड़ा और ज्योतिषी जी वाली बात स्मरण हो आई। सर्किट हाउस में लौटने पर हम ने शास्त्री जी से भी अपने मन का भाव व्यक्त किया। शास्त्र...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 83)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 83 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) देशवासियों का प्यार पाकिस्तान की तो पहले से ही तैयारी थी। इस योजना में अपने को असफ़ल होता देख कर उस ने एकदम से अपनी फौजों को हमला करने का हुक्म दे दिया। सैंकड़ों टैंकों को लेकर पाकिस्तानी सेना भारत पर टूट पड़ी। इन विशाल टैंकों की मार से जहाँ पहाड़ दहल उठते थे, वहाँ भारतीय जवानों की क्या बिसात थी ? लेकिन फिर भी भारतीय जवान बिल्कुल निश्चिन्त थे क्योंकि उनकी विजय भी निश्चित थी। शास्त्री जी को युद्ध के लिए विवश होना पड़ा, क्योंकि उनका यह भी सिद्धान्त था कि ‘हम रहें या न रहें, लेकिन हमारा झण्डा ऊँचा रहना चाहिए और देश सलामत रहना चाहिए।’ उन्होंने इसी सिद्धान्त पर अपने जीवन का निर्माण भी किया था। उन्होंने भी अपने बहादुर जवानों को आदेश दिया और युद्ध छिड़ गया। जवानों ने अपनी जान की बाज़ी लगा दी। असम्भव को सम्भव कर दिखाया। विशाल टैंकों को धराशायी किया, पाकिस्तानी फौज को पीछे खदेड़ा और आगे बढ़ने लगे। जैसे वे शास्...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 82)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 82 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) आए दिन पैसों की ज़रूरत जीवन के प्रारम्भिक दिनों में जब हर तरह की कठिनाइयों से जूझते हुए आगे को बढ़ना था, तब पैसा जोड़ने या इस तरह की कोई बात सोचने का सवाल ही नहीं उठता था, पर जब से शास्त्री जी सरकार में आए, तब से हमारी यह इच्छा अवश्य रहती थी कि अगर कुछ पैसे जोड़ पाती, तो बच्चों की पढ़ाई-लिखाई या शादी-ब्याह में होने वाले ख़र्चों की एक बड़ी परेशानी से जान बची रहती, लेकिन अपनी इस इच्छा की पूर्ति भरसक प्रयत्न करके भी कभी न कर सकी थी। आए दिन शास्त्री जी को कभी किसी की मुसीबत में तो कभी किसी की आर्थिक कठिनाइयों को सुलझाने के लिए पैसे देने ही होते थे। इसके अलावा ग़रीब विद्यार्थियों के प्रति तो उनका एक विशेष आकर्षण था। उनकी जानकारी में आने भर की देर होती थी, फिर तो उसके लिए जितना जो कुछ कर सकते थे, वे करते थे। फ़ल यह होता था कि इधर-उधर से कमी-बेशी करके जो भी इकट्ठा करती, वह सब इन कामों में लग जाता था। यद्यपि ह...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 81)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 81 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) देश रहना चाहिए शास्त्री जी को प्रधानमंत्री का पद संभाले अभी बहुत समय नहीं हुआ था कि देश पर कोई नया संकट आने के आसार दृष्टिगोचर होने लगे। काश्मीर में घुसपैठियों की कार्यवाहियां बढ़ने लगी। छिपे वेश में वे काश्मीर के अन्दर तोड़-फोड़ करने लगे। जंगलों व पहाड़ों के अन्दर अपने हथियारों के अड्डे बनाने लगे। साथ ही जनता के बीच गुप्त रूप से मिथ्या प्रचार भी आरम्भ कर दिया। पहले तो सरकार को वास्तविक जानकारी न हो सकी, पर जब घुसपैठियों की हरकतें ज़्यादा बढ़ी, तो सतर्कता और धर-पकड़ शुरू हुई। सुराग लगने पर मालूम हुआ कि पाकिस्तान इन घुसपैठियों के द्वारा काश्मीर में उथल-पुथल मचवा कर उसे हड़प लेने की तैयारी में हैं। बड़ा आश्चर्य हुआ! पाकिस्तान से ऐसी आशा नहीं की जा सकती थी। आपस में लड़ने से नुकसान के सिवाय लाभ भी क्या था ? क्योंकि शास्त्री जी का कहना था कि लड़ाई से समस्याएं सुलझती नहीं, बल्कि और पैदा होती हैं। एक-दूसरे स...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 80)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 80 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) टीटो के देश में इसी तरह हमें शास्त्री जी के संग युगोस्लाविया भी जाना पड़ा। वहाँ ऐसा सत्कार हुआ, जो देखते ही बनता था। वहाँ के लोग भारतवासियों के प्रति कितना प्रेमभाव रखते हैं, यह वहाँ देखने से ही मालूम पड़ रहा था। राष्ट्रपति टीटो और उनकी पत्नी के स्नेह के सम्बन्ध में जितना कहा जाए, उतना ही थोड़ा है। उनकी पत्नी इतनी भली महिला हैं कि हम बता नहीं सकती। सब जगहों पर हमारे साथ-साथ गई और हमें सब कुछ दिखाया-सुनाया। फिर भी लौटते समय यही कहती रही कि हमारा वे बहुत स्वागत-सत्कार नहीं कर सकी। वे इतनी सज्जन हैं। बाद में जब वे भारत आई थी, तो हमसे मिलने हमारे यहाँ भी आई थी। राष्ट्रपति टीटो का देश दर्शनीय है। वहाँ बड़ी प्रगति हुई है। वहाँ लोगों के अन्दर अपने देश को मजबूत और सुखी-सम्पन्न बनाने का विशेष चाव व लगन है। क्रमशः -- सरिता जैन सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका हिसार 🙏🙏🙏 विनम्र निवेदन यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 79)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 79 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) आख़िरी भेंट नहीं है रूस के प्रधानमंत्री के निमन्त्रण पर रूस जाने का कार्यक्रम बना। देश से बाहर जाने का हमारा यह पहला अवसर था। हमें प्रसन्नता थी। प्रसन्नता इसलिए भी थी कि रूस जैसे महान देश को देखने का अवसर मिल रहा था। उन रूसी भाई-बहिनों को देखने का अवसर मिल रहा था, जिन्होंने आपस में ऊँच-नीच और छोटे-बड़े के भेदभाव को मिटा कर संसार के सामने एक नई मिसाल कायम की है। इतना ही नहीं, रूसी प्रधानमंत्री श्री कोसिगिन ने दुनिया के सभी देशों को भाईचारे के बंधन में बांधने का भी सराहनीय प्रयास किया था और अब भी कर रहे हैं। विदेश में स्वागत - रूस में शास्त्री जी का जैसा स्वागत-सत्कार हुआ, उस का वर्णन करना कठिन है। रूसी भाई-बहिनों के उस स्वागत में सबसे बड़ी विशेषता उन की आत्मीयता थी। तनिक भी बनावटीपन नहीं था। जैसे हम एक शरीर के दो अंग हों। प्रधानमंत्री श्री कोसिगिन की पत्नी की क्या प्रशंसा की जाए ? जैसे बरसों के बिछड़े ...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 78)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 78 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) प्रधानमंत्री की पत्नी प्रधानमंत्री की पत्नी होने के नाते अपने देशवासियों या दूसरे देश के वासियों को हमारे सम्बन्ध में कुछ जानने-बूझने की उत्सुकता को स्वाभाविक कहना ग़लत न होगा। कुछ-न-कुछ लोग जानना चाहते ही हैं। फलस्वरूप ‘प्रैस’ वाले जब-तब हमारे पास आते रहते, हमसे नाना प्रकार के सवाल पूछते और जैसा, जो कुछ हम उत्तर दे सकती थी, देती रहती। एक बार एक ‘प्रैस’ के सज्जन ने पूछा - ‘प्रधानमंत्री की पत्नी होने के कारण अब आप अपने में कैसा अनुभव करती हैं ? ’ ‘वैसे तो कुछ भी अनुभव नहीं करती, पर जब आप लोग आते हैं, तब मालूम पड़ता है कि ज़रूर हमारे अन्दर कोई ख़ास चीज़ आ गई है, क्योंकि पहले तो आप हमारे पास आते नहीं थे।’ यह उत्तर सुन कर ‘प्रैस’ के दूसरे लोग हंसने लगे। सादा जीवन - शास्त्री जी का जीवन जैसा सादा था, वैसा ही उन का पहनावा भी सादा था और वह जीवन के अन्त तक वैसा ही बना रहा था। 10 वर्ष पहले जो गद्दा बना था, उसी ...