नसीब
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नसीब
Image by Lee_seonghak from Pixabay
जितना नसीब में है, वह अवश्य ही मिलेगा।
एक सेठ जी भगवान “कृष्ण” जी के परमभक्त थे। निरंतर उनका जाप करते और सदैव उनको अपने दिल में बसाए रखते थे।
वह रोज स्वादिष्ट पकवान बना कर कृष्ण जी के मंदिर में ले जाते थे, अपने कान्हा जी को भोग लगाने। घर से तो सेठ जी निकलते पर रास्ते में ही उन्हें नींद आ जाती और उनके द्वारा बनाए हुए पकवान चोरी हो जाते।
सेठ जी बहुत दुखी होते और कान्हा जी से शिकायत करते हुए कहते -
हे राधे! हे मेरे कृष्ण!
ऐसा क्यों होता है? मैं आपको भोग क्यों नहीं लगा पाता हूँ?
कान्हा जी सेठ जी को कहते - हे वत्स! दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम। वह भोग मेरे नसीब में नही है। इसलिए मुझ तक नही पहुंचता।
सेठ थोड़ा गुस्से से कहते - ऐसा नहीं है, प्रभु! कल मैं आपको भोग लगाकर ही रहूँगा। आप देख लेना। और यह कह कर सेठ चला जाता है।
कान्हा जी मुस्कुराते हैं और कहते हैं - ठीक है।
दूसरे दिन सेठ सुबह-सुबह जल्दी नहा-धोकर तैयार हो जाता है और अपनी पत्नी से चार डिब्बे भर कर बढ़िया-बढ़िया स्वादिष्ट पकवान बनवाते हैं और उसे लेकर मंदिर के लिए निकल पड़ते हैं।
सेठ डिब्बे पकड़ कर चलता है। रास्ते भर सोचता है - आज जो भी हो जाए सोऊँगा नहीं। कान्हा को भोग लगाकर रहूँगा।
मंदिर के रास्ते में ही उसे एक भूखा बच्चा दिखाई देता है और वह सेठ के पास आकर हाथ फैलाते हुए कुछ देने की गुहार लगाता है।
सेठ उसे ऊपर से नीचे तक देखता है। एक 5-6 साल का बच्चा हड्डियों का ढाँचा उसके सामने खड़ा है। उसे उस पर तरस आ जाता है और वह एक लड्डू निकाल के उस बच्चे को दे देता है।
जैसे ही वह उस बच्चे को लड्डू देता है, बहुत से बच्चों की भीड़ लग जाती है। न जाने कितने दिनों के खाए-पीए नहीं। सेठ को उन पर करुणा आ जाती है।
सेठ जी सब को पकवान बाँटने लगते हैं। देखते ही देखते वह सारे पकवान बाँट देते हैं। फिर उसे याद आता है। आज तो मैंने राधे जी-कान्हा जी को भोग लगाने का वादा किया था।
सेठ सोचते हैं कि मंदिर पहुंचने से पहले ही मैंने भोग खत्म कर दिया। अधूरा-सा मन लेकर वह मंदिर पहुँच जाते हैं और कान्हा की मूर्ति के सामने हाथ जोड़ कर बैठ जाते हैं।
कान्हा प्रकट होते हैं और सेठ को चिढ़ाते हुए कहते हैं - लाओ, जल्दी लाओ मेरा भोग। मुझे बहुत भूख लगी है। मुझे पकवान खिलाओ।
सेठ सारी बात कान्हा को बता देते हैं। कान्हा मुस्कुराते हुए कहते हैं - मैंने तुमसे कहा था ना। दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम। जिसका नाम था उसने खा लिया। तुम क्यों व्यर्थ चिंता करते हो।
सेठ कहता है - प्रभु! मैंने बहुत अंहकार से कहा था कि आज आपको भोग लगाऊंगा, पर मुझे उन बच्चों की करुण अवस्था देखी नहीं गयी और मैं सब कुछ भूल गया।
कान्हा फिर मुस्कुराते हैं और कहते हैं - चलो, आओ मेरे साथ। और सेठ को उन बच्चों के पास ले जाते हैं जहाँ सेठ ने उन्हें खाना खिलाया था और सेठ से कहते हैं - ज़रा देखो। कुछ नज़र आ रहा है।
सेठ की ऑखों से आँसुओं का सैलाब बहने लगता है। स्वंय बाँके-बिहारी लाल उन भूखे बच्चों के बीच में खाने के लिए लड़ते नजर आते हैं।
कान्हा जी कहते हैं - यही वह पहला बच्चा है जिसकी तुमने भूख मिटाई। मैं हर जीव में हूँ, अलग-अलग भेष में, अलग-अलग कलाकारी में। अगर तुम्हें लगे कि मैं ये काम इसके लिए कर रहा था, पर वह दूसरे के लिए हो जाए, तो उसे मेरी ही इच्छा समझना क्योंकि मैं तो हर कहीं हूँ।
बस दाने नसीब की जगह से खाता हूँ। जिस-जिस जगह नसीब का दाना हो, वहाँ पहुँच जाता हूँ। फिर इसको तुम क्या कोई भी नहीं रोक सकता। क्योंकि नसीब का दाना, नसीब वाले तक कैसे भी पहुँच जाता है। चाहे तुम उसे देना चाहो या न देना चाहो। अगर उसके नसीब का है तो उसे प्राप्त जरूर होगा।
सेठ कान्हा के चरणों में गिर जाते हैं और कहते हैं - आपकी माया आप ही जानें।
प्रभु मुस्कुराते हैं और कहते हैं - कल मेरा भोग मुझे ही देना दूसरों को नहीं। प्रभु और सेठ भक्त हंसने लगते हैं।
आप लोगो के साथ भी ऐसा कई बार हुआ होगा। मित्रों! किसी और का खाना या कोई और चीज किसी और को मिल गयी। पर आप कभी इस पर गुस्सा न करें। ये सब प्रभु की माया है। उसकी हर इच्छा में उनका धन्यवाद करें।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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