खाली पीपे

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खाली पीपे

Image by Bente Jønsson from Pixabay

आज की कथा में जानते हैं कि जब हम कहते रहते हैं, हमारे पास भक्ति के लिए समय नहीं है तो परिणाम क्या होता है।

एक बहुत बड़ा सौदागर नौका लेकर दूर-दूर देशों में करोड़ों रुपये कमाने जाता था।

उसके मित्रों ने उससे कहा कि तुम नौका में घूमते हो। पुराने जमाने की नौका है। समुद्र में तूफ़ान आते हैं, खतरे बहुत होते हैं और नावें डूब जाती हैं। तुम तैरना तो सीख लो।

सौदागर ने कहा कि तैरना सीखने के लिए मेरे पास समय कहां है?

लोगों ने कहा, ‘ज्यादा समय की जरूरत नहीं है। गाँव में एक कुशल तैराक है, जो कहता है कि वह तीन दिन में ही तैरना सिखा देगा।’

‘हाँ! वह जो कहता है तो ठीक ही कहता होगा; लेकिन मेरे पास तीन दिन कहाँ? तीन दिन में तो मैं हज़ारों का कारोबार कर लेता हूँ। तीन दिन में तो लाखों रूपए यहां से वहाँ हो जाते हैं। कभी फुरसत मिलेगी तो जरूर सीख लूंगा।’

फिर भी लोगों ने कहा कि ख़तरा बहुत बड़ा है, तुम्हारा जीवन निरन्तर नाव पर है और दाँव पर है। किसी भी दिन जान को ख़तरा हो सकता है और तुम तो तैरना भी नहीं जानते।

उसने कहा कि और कोई सस्ती तरकीब हो तो बताओ, इतना समय तो मेरे पास नहीं है। तो लोगों ने कहा कि कम से कम दो ख़ाली पीपे अपने पास रख लो। कभी ज़रूरत पड़ जाए तो उन्हें पीठ पर बाँध लेना ताकि उन्हें पकड़कर तुम तैर तो सकोगे।

उसने दो खाली पीपे मुंह बन्द करवाकर अपने पास रख लिए। उनको हमेशा अपनी नाव में जहां वो सोता वहीं रख लेता।

किसी को पता भी न था कि एक दिन वह घड़ी आ ही गई। तूफ़ान उठा और नाव डूबने लगी।

वह चिल्लाया, ‘मेरे पीपे कहां है?

उसके नाविकों ने बताया कि वे तो उसके बिस्तर के पास ही रखे हुए हैं।

बाकी नाविक तो कूद गये, वे तैरना जानते थे।

वह अपने पीपों के पास गया। दो खाली पीपे भी वहां थे जो उसने तैरने के लिए रखे थे और दो स्वर्ण मुद्राओं से भरे पीपे भी थे, जिन्हें वह लेकर आ रहा था।

उसका मन डांवाडोल होने लगा कि कौन से पीपे लेकर कूदे, सोने से भरे हुए या खाली पीपे? फिर उसने देखा कि नाव डूबने वाली है। खाली पीपे लेकर कूदने से क्या होगा? मेरा सोना तो डूब ही जाएगा! उसने अपने सोने से भरे पीपे लिए और कूद गया।

जो अंत उस सौदागर का हुआ होगा, वह आप समझ सकते हैं।

वह तैरने के लिए समय नहीं निकाल सका था। क्या आप समय निकाल रहे हैं? उसे तो बचने का मौका भी मिल गया था। वह खाली पीपे लेकर कूद सकता था, लेकिन समय पर उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई और वह भरे पीपे लेकर कूद गया और अपने जीवन से हाथ धो बैठा।

यही हाल हमारा है। अभी थोड़ा व्यापार संभाल लें, थोड़ा मकान देख लें, परिवार में मेरे बिना सब चौपट हो जाएगा, थोड़ा उसको भी देख लें, बस ऐसे ही जीवन निकाल रहे हैं। हम तैरना कब सीखेंगे जबकि हम संसार-सागर में टूटी हुई नाव में बैठे हैं।

सभी सन्त महात्मा पुकार-पुकार कर सावधान कर रहे हैं, लेकिन हमारे पास समय नहीं है।

यहां तक कि 2 खाली पीपे भी हमने साथ नहीं रखे हैं सत्संग और सेवा के। उनको भी हमने अहंकार और दौलत के दिखावे से भर रखा है, क्योंकि जिनको जीवन भर दिखावे, अहंकार और दौलत से भरे-भरे, फूले-फूले होने की आदत होती है, वे एक क्षण भी खाली होने को राजी नहीं हो सकते।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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