अठावन घड़ी कर्म की और दो घड़ी धर्म की
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अठावन घड़ी कर्म की और दो घड़ी धर्म की
Image by Marjon Besteman from Pixabay
एक नगर में एक धनवान सेठ रहता था। अपने व्यापार के सिलसिले में उसका बाहर आना-जाना लगा रहता था। एक बार वह परदेस से लौट रहा था। साथ में बहुत सारा धन था, इसलिए उसने तीन-चार पहरेदार भी साथ ले लिए।
लेकिन जब वह अपने नगर के नजदीक पहुँचा, तो सोचा कि अब क्या डर। इन पहरेदारों को यदि घर ले जाऊंगा तो भोजन कराना पड़ेगा। अच्छा होगा, यहीं से विदा कर दूँ। उसने पहरेदारों को वापस भेज दिया।
दुर्भाग्य देखिए कि वह कुछ ही कदम आगे बढ़ा था कि अचानक डाकुओं ने उसे घेर लिया। डाकुओं को देखकर सेठ का कलेजा हाथ में आ गया। सोचने लगा, ऐसा अंदेशा होता तो पहरेदारों को क्यों छोड़ता? आज तो बिना मौत मरना पड़ेगा।
डाकू, सेठ से उसका धन आदि छीनने लगे। तभी उन डाकुओं में से दो को सेठ ने पहचान लिया। वे दोनों कभी सेठ की दुकान पर काम कर चुके थे।
उनका नाम लेकर सेठ बोला, अरे। तुम रामू-दामू हो न!
अपना नाम सुन कर उन दोनों ने भी सेठ को ध्यानपूर्वक देखा। उन्होंने भी सेठ को पहचान लिया। उन्हें लगा, इनके यहाँ पहले नौकरी की थी, इनका नमक खाया है। इनको लूटना ठीक नहीं है।
उन्होंने अपने बाकी साथियों से कहा, “भाई! इन्हें मत लूटो, ये हमारे पुराने सेठ जी हैं। हमने इनका नमक खाया है। हम डाकू हैं, नमकहराम नहीं।”
यह सुनकर डाकुओं ने सेठ को लूटना बंद कर दिया।
दोनों डाकुओं ने कहा, “सेठ जी! अब आप आराम से घर जाइए, आप पर कोई हाथ नहीं डालेगा।”
सेठ सुरक्षित घर पहुंच गया। लेकिन मन ही मन सोचने लगा, दो लोगों की पहचान के कारण साठ डाकुओं का खतरा टल गया। धन भी बच गया, जान भी बच गई।
अपने रात और दिन के 24 घण्टे में भी साठ घड़ी होती हैं, अगर दो घड़ी भी अच्छे काम किए जाएं, तो शेष अठावन घड़ियों का दुष्प्रभाव दूर हो सकता है।
इसलिए अठावन घड़ी कर्म की और दो घड़ी धर्म की।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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Bahut Sundar
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