गिफ्ट

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गिफ्ट

Image by Couleur from Pixabay

एक बहुत ही बड़े उद्योगपति का पुत्र कॉलेज में अंतिम वर्ष की परीक्षा की तैयारी में लगा हुआ था। उसके पिता ने उसकी परीक्षा के विषय में पूछा तो वह जवाब में बोला कि हो सकता है कॉलेज में अव्वल आऊँ। अगर मैं अव्वल आया तो मुझे वह महंगी वाली कार ला दोगे न जो मुझे बहुत पसंद है?

पिता खुश होकर कहते हैं - क्यों नहीं, अवश्य ला दूंगा।

ये तो उनके लिए आसान था। उनके पास पैसों की कोई कमी नहीं थी।

जब पुत्र ने सुना तो वह दोगुने उत्साह से पढ़ाई में लग गया। रोज कॉलेज आते-जाते वह शोरूम में रखी कार को निहारता और मन ही मन कल्पना करता कि वह अपनी मनपसंद कार चला रहा है।

दिन बीतते गए और परीक्षा खत्म हुई। परिणाम आया। वह कॉलेज में अव्वल आया था। उसने कॉलेज से ही पिता को फोन लगाकर बताया कि वे उसका इनाम, कार तैयार रखें। मैं घर आ रहा हूँ।

घर आते-आते वह ख्यालों में गाड़ी को घर के आँगन में खड़ा देख रहा था। जैसे ही घर पंहुचा, उसे वहाँ कोई कार नही दिखी।

वह बुझे मन से पिता के कमरे में दाखिल हुआ।

उसे देखते ही पिता ने गले लगाकर बधाई दी और उसके हाथ में कागज में लिपटी एक वस्तु थमाई और कहा - लो! यह तुम्हारा गिफ्ट।

पुत्र ने बहुत ही अनमने दिल से गिफ्ट हाथ में लिया और अपने कमरे में चला गया। मन ही मन पिता को कोसते हुए उसने कागज खोल कर देखा। उसमें सोने के कवर में रामायण दिखी। ये देखकर अपने पिता पर बहुत गुस्सा आया।

लेकिन उसने अपने गुस्से को संयमित कर एक चिठ्ठी अपने पिता के नाम लिखी कि पिता जी! आपने मेरी कार गिफ्ट न देकर ये रामायण दी। शायद इसके पीछे आपका कोई अच्छा राज छिपा होगा, लेकिन मैं यह घर छोड़ कर जा रहा हूँ और तब तक वापस नही आऊंगा, जब तक मैं बहुत पैसा न कमा लूँ। और चिठ्ठी रामायण के साथ पिता के कमरे में रख कर घर छोड़ कर चला गया।

समय बीतता गया....।

पुत्र होशियार था, होनहार था। जल्दी ही बहुत धनवान बन गया। शादी की और शान से अपना जीवन जीने लगा। कभी-कभी उसे अपने पिता की याद आ जाती तो उसकी चाहत पर पिता से गिफ्ट न पाने की खीज हावी हो जाती। वह सोचता कि माँ के जाने के बाद मेरे सिवा उनका था कौन? इतना पैसा रहने के बाद भी मेरी छोटी सी इच्छा भी पूरी नहीं की।

यह सोचकर वह पिता से मिलने से कतराता था।

एक दिन उसे अपने पिता की बहुत याद आने लगी। उसने सोचा कि क्या छोटी-सी बात को लेकर अपने पिता से नाराज हुआ। यह अच्छा नहीं हुआ।

ये सोचकर उसने पिता को फोन लगाया। बहुत दिनों बाद पिता से बात कर रहा हूँ, ये सोच धड़कते दिल से रिसीवर थामे खड़ा रहा।

तभी सामने से पिता के नौकर ने फ़ोन उठाया और उसे बताया कि मालिक तो दस दिन पहले स्वर्ग सिधार गए और अंत तक तुम्हें याद करते रहे और रोते हुए चल बसे।

जाते-जाते कह गए कि मेरे बेटे का फोन आये तो उसे कहना कि आकर अपना व्यवसाय संभाल ले। तुम्हारा कोई पता नही होने से तुम्हें सूचना नहीं दे पाये।

यह जानकर पुत्र को गहरा दुःख हुआ और दुखी मन से अपने पिता के घर रवाना हुआ।

घर पहुंच कर पिता के कमरे में जाकर उनकी तस्वीर के सामने रोते हुए रुंधे गले से उसने पिता का दिया हुआ गिफ्ट ‘रामायण’ को उठाकर माथे पर लगाया और उसे खोलकर देखा।

पहले पन्ने पर पिता द्वारा लिखा वाक्य पढ़ा जिसमे लिखा था - मेरे प्यारे पुत्र, तुम दिन-दुनी रात-चौगुनी तरक्की करो और साथ ही साथ मैं तुम्हें कुछ अच्छे संस्कार दे पाऊं ये सोचकर ये रामायण दे रहा हूँ।

पढ़ते वक्त उस रामायण से एक लिफाफा सरक कर नीचे गिरा जिसमें उसी गाड़ी की चाबी और नगद भुगतान वाला बिल रखा हुआ था।

ये देखकर उस पुत्र को बहुत दुःख हुआ और वह धड़ाम से जमीन पर गिर रोने लगा।

हम हमारा मनचाहा उपहार हमारी पैकिंग में न पाकर उसे अनजाने में खो देते हैं।

पिता तो ठीक है, ईश्वर भी हमें अपार गिफ्ट देते हैं, लेकिन हम अज्ञानी हमारी मनपसंद पैकिंग में न देखकर, उसे पा कर भी खो देते हैं।

हमें अपने माता-पिता के प्रेम से दिये ऐसे अनगिनत उपहारों का, प्रेम का सम्मान करना चाहिए और उनका धन्यवाद करना चाहिये।

मेरी बात अगर आपके हृदय को छुई हो, तो इस मैसेज को आप चाहो तो अपनों को शेयर करो। अन्य कोई पुत्र ऐसे ही अपने पिता के गिफ्ट से वंचित न रहे, उनके प्रेम से वंचित न रहे।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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