माता-पिता का सम्मान

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माता-पिता का सम्मान

Image by Anja from Pixabay

एक वृद्धा माँ रात को 11:30 बजे रसोई में बर्तन साफ कर रही है। घर में दो बहुएँ हैं, जो बर्तनों की आवाज़ से परेशान होकर अपने पतियों को सास को उलाहना देने को कहती हैं।

वे कहती हैं कि आपकी माँ को मना करो इतनी रात को बर्तन धोने के लिये। बर्तनों की आवाज़ से हमारी नींद ख़राब होती है। साथ ही सुबह 4 बजे उठकर फिर खटर-पटर शुरू कर देती हैं। सुबह 5 बजते ही पूजा शुरू हो जाती है और रात को आरती। न ख़ुद सोती हैं और न हमें सोने देती हैं। न रात को चैन है और न ही सुबह। जाओ, अब सोच क्या रहे हो? जाकर माँ को मना करो।

बड़ा बेटा खड़ा होता है और रसोई की तरफ जाता है। रास्ते में छोटे भाई के कमरे में से भी वही बातें सुनाई पड़ती हैं, जो उसके कमरे में हो रही थी। वह छोटे भाई के कमरे को खटखटा देता है। छोटा भाई बाहर आता है।

दोनो भाई रसोई में जाते हैं और माँ को बर्तन साफ़ करने में मदद करने लगते हैं। माँ मना करती है पर वे नहीं मानते। बर्तन साफ़ हो जाने के बाद दोनों भाई माँ को बड़े प्यार से उसके कमरे में ले जाते हैं, तो देखते हैं कि पिताजी भी जागे हुए हैं।

दोनों भाई माँ को बिस्तर पर बैठा कर कहते हैं - माँ! सुबह हमें जल्दी उठा देना। हमें भी पूजा करनी है और सुबह पिताजी के साथ हम योगा भी करेंगे।

माँ बोली - ठीक है, बच्चों!

दोनो बेटे सुबह जल्दी उठने लगे, रात को 9:30 पर ही बर्तन मांजने लगे, तो पत्नियां बोली - माता जी करती तो हैं! आप क्यों कर रहे हो बर्तन साफ़?

तो बेटे बोले - हम लोगों की शादी करने के पीछे एक कारण यह भी था कि माँ की सहायता हो जायेगी, पर तुम लोग ये कार्य नहीं कर रही हो। कोई बात नहीं। हम अपनी माँ की सहायता कर देते हैं। हमारी तो माँ है, इसमें क्या बुराई है?

अगले तीन दिनों में ही घर में पूरा बदलाव आ गया। बहुएँ जल्दी बर्तन इसलिये साफ करने लगी कि नहीं तो उनके पति बर्तन साफ़ करने लगेंगे। साथ ही सुबह वह भी पतियों के साथ ही उठने लगी और पूजा-आरती में शामिल होने लगी।

कुछ दिनों में पूरे घर के वातावरण में पूरा बदलाव आ गया। बहुएँ सास-ससुर को पूरा सम्मान देने लगी।

कहानी का सार

माँ का सम्मान तब कम नहीं होता, जब बहुएँ उनका सम्मान नहीं करती। माँ का सम्मान तब कम होता है, जब बेटे अपनी पत्नियों की बातों में आकर माँ के साथ लड़ने लगें, माँ का सम्मान न करें या माँ का धर्म-कर्म के कार्यों में सहयोग न करें।

यह तो बेटों के जन्म से भी पहले का रिश्ता है।

माता-पिता पहले आपके हैं, बहुएँ उनको माता-पिता मानें या न मानें।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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