श्री कृष्ण की परीक्षा
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श्री कृष्ण की परीक्षा
Image by Annette Meyer from Pixabay
एक बार श्री कृष्ण के गुरु दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में किसी जंगल में रुककर उन्होंने आराम किया। समीप ही द्वारिका नगरी थी।
दुर्वासा ऋषि ने अपने शिष्यों को भेजा कि श्री कृष्ण को बुला कर लाओ। उनके शिष्य द्वारिका गये और द्वारकाधीश को गुरुदेव का सन्देश दिया।
सन्देश सुनते ही श्री कृष्ण दौड़े-दौड़े अपने गुरु के पास आए और उन्हें दण्डवत प्रणाम किया।
आवभगत के पश्चात् श्री कृष्ण ने उनसे द्वारिका चलने के लिए विनती की लेकिन ऋषि दुर्वासा ने चलने से मना कर दिया और कहा कि हम फिर कभी आपके पास आयेंगे।
श्री कृष्ण ने पुनः अपने गुरुदेव दुर्वासा ऋषि से विनती की, तब दुर्वासा ऋषि ने कहा कि ठीक है कृष्ण, हम तुम्हारे साथ चलेंगे, पर हम जिस रथ पर जायेंगे, उसे घोड़े नहीं खीचेंगे। एक ओर से तुम और दूसरी ओर से तुम्हारी पटरानी रुक्मणि ही रथ खीचेंगी।
श्री कृष्ण उसी समय दौड़ते हुए रुक्मणि जी के पास गए और उन्हें बताया कि गुरुदेव को तुम्हारी सेवा की जरुरत है।
रुक्मणि जी को उन्होंने सारी बात बताई और वे दोनों गुरुदेव के पास आये, और उनसे रथ पर बैठने के लिए विनती की।
जब गुरुदेव दुर्वासा ऋषि रथ पर बैठे तो उन्होंने अपने शिष्यों को भी उसी रथ पर बैठने के लिए कहा।
श्री कृष्ण ने इसकी भी परवाह नहीं की क्योंकि वे तो जानते ही थे कि गुरुदेव आज उनकी परीक्षा ले रहे हैं।
रुक्मणि और श्री कृष्ण ने रथ को खींचना आरम्भ किया और उस रथ को खींचते-खींचते द्वारिका पहुँच गए।
जब ऋषि दुर्वासा द्वारिका पहुँचे तो श्री कृष्ण ने उन्हें राजसिंहासन पर बिठाया। उनका पूजन और सत्कार किया, तदुपरांत 56 प्रकार के व्यंजन बनवाये और अपने गुरुदेव के सम्मुख रखा।
पर जैसे ही वे व्यंजन लेकर गुरुदेव के पास पहुँचे, उन्होंने सारे व्यंजनों का तिरस्कार कर दिया।
श्री कृष्ण ने पुनः अपने गुरुदेव से हाथ जोड़कर पूछा कि गुरुदेव! आप क्या स्वीकार करेंगे?
दुर्वासा ऋषि ने खीर बनवाने के लिए कहा।
श्री कृष्ण ने आज्ञा मानकर खीर बनवाई।
खीर बनकर आई। खीर से भरा पतीला दुर्वासा ऋषि जी के पास पहुँचा। उन्होंने खीर का भोग लगाया। थोड़ी-सी खीर का भोग लगा कर उन्होंने श्री कृष्ण को खाने के लिए कहा।
उस पतीले में से भगवान श्री कृष्ण ने थोड़ी-सी खीर को खाया।
तब उनके गुरुदेव ऋषि दुर्वासा ने श्री कृष्ण को बाकी खीर अपने शरीर पर लगाने की आज्ञा दी। श्री कृष्ण जी ने आज्ञा पाकर खीर को अपने शरीर पर लगाना शुरू कर दिया।
उन्होंने पूरे शरीर पर खीर लगा ली, पर जब पैरों पर लगाने की बारी आई तो श्री कृष्ण ने अपने पैरों पर खीर लगाने से मना कर दिया।
श्री कृष्ण जी ने कहा, ‘हे गुरुदेव! यह खीर आपका भोग-प्रसाद है, मैं इस भोग को अपने पैरों पर नहीं लगाऊंगा।’
उनके गुरुदेव श्री कृष्ण से अत्यंत प्रसन्न हुए।
उन्होंने कहा, ‘हे वत्स! मैं तुमसे अति प्रसन्न हूँ। तुम हर परीक्षा में सफल रहे। मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ कि पूरे शरीर में तुमने जहाँ-जहाँ खीर लगाई है, वह अंग वज्र के समान हो जायेगा।’
इतिहास साक्षी है कि महाभारत के युद्ध में कोई भी अस्त्र-शस्त्र श्री कृष्ण का बाल भी बाँका नहीं कर पाया था।
इसीलिए ठाकुर जी के चरण कमल अति कोमल हैं और उनसे प्रेम करने वाले साधक इन युगल चरण कमलों को अपने हृदय रूपी सिंहासन पर धारण करने के लिए जीवन भर प्रयास करते हैं।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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धन्यवाद।
Bahut sundar lekh hai .Jai shree krishna..
ReplyDeleteRadhey krishna
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