एक चुटकी ज़हर

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एक चुटकी ज़हर

Image by Alexa from Pixabay

आरती नामक एक युवती का विवाह हुआ और वह अपने पति व सास के साथ अपने ससुराल में रहने लगी। कुछ ही दिनों बाद आरती को आभास होने लगा कि उसकी सास के साथ पटरी नहीं बैठ रही है। सास पुराने ख्यालों की थी और बहू नए विचारों वाली।

आरती और उसकी सास का आये दिन झगड़ा होने लगा।

दिन बीते, महीने बीते, साल भी बीत गया, न तो सास टीका-टिप्पणी करना छोड़ती और न आरती जवाब देना। हालात बद से बदतर होने लगे। आरती को अब अपनी सास से पूरी तरह नफरत हो चुकी थी। आरती के लिए उस समय स्थिति और बुरी हो जाती, जब उसे भारतीय परम्पराओं के अनुसार दूसरों के सामने अपनी सास को सम्मान देना पड़ता। अब वह किसी भी तरह सास से छुटकारा पाने की सोचने लगी।

एक दिन जब आरती का अपनी सास से झगडा हुआ और पति भी अपनी माँ का पक्ष लेने लगा तो वह नाराज़ होकर मायके चली आई।

आरती के पिता आयुर्वेद के डॉक्टर थे। उसने रो-रो कर अपनी व्यथा पिता को सुनाई और बोली - “आप मुझे कोई जहरीली दवा दे दीजिये जो मैं जाकर उस बुढ़िया को पिला दूँ और मुझे सदा के लिए उससे छुटकारा मिल जाए। नहीं तो मैं अब ससुराल नहीं जाऊँगी।”

बेटी का दुःख समझते हुए पिता ने आरती के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा - “बेटी, अगर तुम अपनी सास को ज़हर खिला कर मार दोगी तो तुम्हें पुलिस पकड़ कर ले जाएगी और साथ ही मुझे भी, क्योंकि वो ज़हर मैं तुम्हें दूंगा। इसलिए ऐसा करना ठीक नहीं होगा।”

लेकिन आरती जिद पर अड़ गई - “आपको मेरा साथ देना ही होगा। अब मैं किसी भी कीमत पर उसका मुँह देखना नहीं चाहती!”

कुछ सोचकर पिता बोले - “ठीक है। जैसी तुम्हारी मर्जी। लेकिन मैं तुम्हें जेल जाते हुए भी नहीं देख सकता, इसलिए जैसे मैं कहूँ वैसे तुम्हें करना होगा। मंजूर हो तो बोलो?”

“क्या करना होगा?”, आरती ने पूछा।

पिता ने एक पुड़िया में ज़हर का पाउडर बाँधकर आरती के हाथ में देते हुए कहा - “तुम्हें इस पुड़िया में से सिर्फ एक चुटकी पाउडर रोज़ अपनी सास के भोजन में मिलाना है। कम मात्रा होने से वह एकदम से नहीं मरेगी, बल्कि धीरे-धीरे आंतरिक रूप से कमजोर होकर 5 से 6 महीनों में मर जाएगी। लोग समझेंगे कि वह स्वाभाविक मौत मर गई।”

पिता ने आगे कहा - “लेकिन तुम्हें बेहद सावधान रहना होगा ताकि तुम्हारे पति को बिलकुल भी शक न होने पाए। वरना हम दोनों को जेल जाना पड़ेगा। इसके लिए तुम आज के बाद अपनी सास से बिलकुल भी झगड़ा नहीं करोगी, बल्कि उसकी बात सुनोगी और उसकी सेवा करोगी। यदि वह तुम पर कोई टीका-टिप्पणी करती है, तो तुम चुपचाप सुन लोगी, बिलकुल भी प्रत्युत्तर नहीं दोगी। बोलो कर पाओगी ये सब?”

आरती ने सोचा - छः महीनों की ही तो बात है। फिर तो छुटकारा मिल ही जाएगा। उसने पिता की बात मान ली और वह पुड़िया लेकर ससुराल चली आई।

ससुराल आते ही अगले ही दिन से आरती ने सास के भोजन में एक चुटकी पाउडर रोजाना मिलाना शुरू कर दिया और दिन गिनने आरम्भ कर दिए।

साथ ही उसके प्रति अपना बर्ताव भी बदल लिया। अब वह सास के किसी भी ताने का जवाब नहीं देती बल्कि क्रोध को पीकर मुस्कुराते हुए सुन लेती।

रोज़ उसके पैर दबाती और उसकी हर बात का ख़याल रखती।

सास से पूछ-पूछ कर उसकी पसंद का खाना बनाती, उसकी हर आज्ञा का पालन करती।

कुछ हफ्ते बीतते-बीतते सास के स्वभाव में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया। बहू की ओर से अपने तानों का प्रत्युत्तर न पाकर उसके ताने अब कम हो चले थे, बल्कि वह कभी-कभी बहू की सेवा के बदले आशीष भी देने लगी थी।

धीरे-धीरे चार महीने बीत गए। आरती नियमित रूप से सास को रोज़ एक चुटकी पाउडर देती आ रही थी।

किन्तु उस घर का माहौल अब एकदम से बदल चुका था। सास-बहू का झगड़ा पुरानी बात हो चुकी थी। पहले जो सास आरती को गालियाँ देते नहीं थकती थी, अब वही आस-पड़ोस वालों के आगे आरती की तारीफों के पुल बाँधने लगी थी।

बहू को साथ बिठाकर खाना खिलाती और सोने से पहले भी जब तक बहू से चार प्यार भरी बातें न कर ले, उसे नींद नहीं आती थी।

छठा महीना आते-आते आरती को लगने लगा कि उसकी सास उसे बिलकुल अपनी बेटी की तरह मानने लगी है। उसे भी अपनी सास में माँ की छवि नज़र आने लगी थी।

जब वह सोचती कि उसके दिए ज़हर से उसकी सास कुछ ही दिनों में मर जाएगी, तो वह परेशान हो जाती थी।

इसी ऊहापोह में एक दिन वह अपने पिता के घर दोबारा जा पहुंची और बोली - “पिताजी, मुझे उस ज़हर के असर को ख़त्म करने की दवा दीजिये क्योंकि अब मैं अपनी सास को मारना नहीं चाहती। वो बहुत अच्छी है और अब मैं उन्हें अपनी माँ की तरह चाहने लगी हूँ!”

पिता ठठाकर हँस पड़े और बोले - “ज़हर? कैसा ज़हर? मैंने तो तुम्हें ज़हर के नाम पर हाजमे का चूर्ण दिया था। हा-हा-हा!!!”

“अपनी बेटी को सही रास्ता दिखाएं और माँ-बाप होने का पूर्ण फर्ज अदा करें।”

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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